नीति आयोग द्वारा 14 जून 2018 को समग्र जल प्रबंध रिपोर्ट जारी की गई. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने इतिहास में सबसे गंभीर जल संकट से गुजर रहा है. जल के उचित प्रबंधन और उपयोग के अभाव में जलसंकट आने वाले वर्षों में और गहराएगा.
रिपोर्ट के अनुसार स्थिति यह है कि 600 मिलियन लोग गंभीर जलसंकट का सामना कर रहे हैं और 2,00,000 लोगों की प्रतिवर्ष शुद्ध जल के अभाव में मृत्यु हो जाती है.
समग्र जल प्रबंधन रिपोर्ट
• रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक भारत में जल की मांग आपूर्ति से दोगुना होने का अनुमान है, जिसके कारण लाखों लोगों को गंभीर जलसंकट झेलना पड़ेगा.
• नीति आयोग ने समग्र जल प्रबंधन के पहले सूचकांक के आधार पर राज्यों की सूची तैयार की है.
• यह सूचकांक नौ व्यापक क्षेत्रों में भूमिगत , जल निकायों के स्तर में सुधार , सिंचाई, कृषि गतिविधियां, पेय जल, नीति एवं संचालन व्यवस्था समेत कुल 28 विभिन्न संकेतकों के आधार पर तैयार किया गया है.
• वर्ष 2015-16 के मुकाबले सुधार के मामले में सामान्य राज्यों में राजस्थान पहले स्थान पर रहा जबकि पूवोत्तर और हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा पहले स्थान पर है.
• नीति आयोग ने भविष्य में सालाना आधार पर रैंकिंग जारी करने का प्रस्ताव किया है.
• रिपोर्ट में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ के गांवों में 84 प्रतिशत आबादी जलापूर्ति से वंचित हैं जिन्हें पानी मिल रहा है, उसमें 70 प्रतिशत प्रदूषित हैं.
• स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा जुटाए डाटा का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित पानी के साथ भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें पायदान पर है.
सबसे बेहतर टॉप 5 राज्य | सबसे ख़राब 5 राज्य |
गुजरात | झारखंड |
मध्य प्रदेश | हरियाणा |
आंध्र प्रदेश | उत्तर प्रदेश |
कर्नाटक | बिहार |
महाराष्ट्र | ओडिशा |
समग्र जल प्रबंधन सूचकांक
नीति आयोग द्वारा जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन में प्रदर्शन का आकलन और सुधार करने के लिए समग्र जल प्रबंधन सूचकांक को उपयोगी उपकरण के रूप में लॉन्च किया गया था. इसका उद्देश्य जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए उपयुक्त रणनीतियों को तैयार करना और लागू करना है. संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक में 9 पैरामीटर और 28 संकेतक शामिल हैं. इनमें भूजल, सिंचाई, जल निकायों की मरम्मत, कृषि प्रथाओं, पेयजल, नीति और शासन के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है. विश्लेषण के उद्देश्य से सूचकांक में राज्यों को उत्तर पूर्वी व हिमालयी राज्यों और अन्य राज्यों के दो विशेष समूहों में विभाजित किया गया था.
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