वरिष्ठ साहित्यकार शरद पगारे को साल 2020 के लिए केके बिड़ला फाउंडेशन की तरफ से व्यास सम्मान की घोषणा की गई है. उन्हें यह सम्मान वर्ष 2010 में आए उनके उपन्यास 'पाटलिपुत्र की सम्राज्ञी' के लिए दिया गया है. यह सम्मान पिछले दस वर्षों में प्रकाशित किसी भारतीय नागरिक की उत्कृष्ट हिंदी कृति पर दिया जाता है.
यह निर्णय हिंदी साहित्य के विद्वान प्रोफेसर रामजी तिवारी की अध्यक्षता में संचालित एक चयन समिति ने किया. वे व्यास सम्मान पाने वाले मध्य प्रदेश के पहले हिंदी लेखक हैं. उन्हें इस सम्मान में चार लाख रुपए की पुरस्कार राशि के साथ ही प्रशस्ति और प्रतीक चिन्ह भेंट किया जाएगा.
साहित्यकार शरद पगारे के बारे में
• प्रोफेसर शरद पगारे का जन्म 05 जुलाई 1931 को खंडवा मध्य प्रदेश में हुआ था. वे इतिहास के प्रतिष्ठित विद्वान, शोधकर्ता और यशस्वी प्राध्यापक रहे हैं. उनकी कई रचनाओं का अंग्रेजी, उड़िया, मराठी, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है.
• शरद पगारे को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भारतभूषण सम्मान के अतिरिक्त कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उनके अब तक छ: कहानी संग्रह, दो नाटक व शोध प्रबंध प्रकाशित हुए हैं. भारत ही नहीं विदेशों में भी इनके प्रामाणिक इतिहास ज्ञान की सराहना की गई है.
• शरद पगारे इतिहास के विद्वान, शोधकर्ता और प्राध्यापक रहे हैं. पगारे ने वृंदावन लाल वर्मा की ऐतिहासिक उपन्यास परम्परा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है. एक इतिहासकार होने के साथ ही वे सफल कथाकार भी हैं. वे इन दिनों सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन में संलग्न हैं.
व्यास सम्मान: एक नजर में
व्यास सम्मान की शुरुआत साल 1991 में केके बिड़ला फाउंडेशन द्वारा की गई थी. यह सम्मान किसी भारतीय लेखक को पिछले दस वर्ष के भीतर प्रकाशित उसकी किसी उत्कृष्ट कृति को मिलता है. इसके तहत चार लाख रुपए की पुरस्कार राशि के साथ एक प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिन्ह भेंट किया जाता है.
पहला व्यास सम्मान साल 1991 में रामविलास शर्मा की कृति 'भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी' के लिए दिया गया था. व्यास सम्मान की विशिष्टता यह है कि इसे साहित्यकार को केंद्र में न रखकर साहित्यिक कृति को दिया जाता है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation