सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसम्बर 2017 को व्यवस्था दी है कि होटल और रेस्तरां अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर पैक किए हुए उत्पाद बेचने को बाध्य नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि होटल और रेस्तरां में बेचे जाने वाले बोतलबंद पानी पर लीगल मेट्रोलोजी एक्ट लागू नहीं होगा. इसलिए यदि वे एमआरपी से भी ज्यादा कीमत पर ये उत्पाद बेचते हैं तो उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती.
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जस्टिस आर.एफ. नारीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि होटल और रेस्तरां में बिक्री और सेवा के संयुक्त तत्व होते हैं, यहां ग्राहकों को सुखद और आरामदायक वातावरण दिया जाता है जिसमें काफी निवेश किया जाता है. यह साधारण बिक्री का मसला नहीं है. कोई व्यक्ति होटल में सिर्फ पानी की बोतल लेने नहीं जाता.
पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट ने होटल ऐंड रेस्तरां असोसिएशंस ऑफ इंडिया (एफएचआरएआई) और केंद्र सरकार मामले में यह फैसला दिया है. एफएचआरएआई ने इस सिलसिले में स्पेशल लीव पिटीशन दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि होटल और रेस्तरां फूड और ड्रिंक्स सर्व करते हैं, वे सर्विस देते हैं और यह कंपोजिट बिलिंग के साथ मिला-जुला ट्रांजैक्शन है और इन इकाइयों पर एमआरपी रेट के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का यह तर्क खारिज कर दिया कि होटल में भी बिक्री पर मेट्रोलोजी एक्ट लागू होगा और वे एमआरपी से अधिक दाम पर वस्तुएं नहीं बेच सकते. एमआरपी से ज्यादा कीमत वसूलने पर जेल की सजा का प्रावधान है.
लीगल मेट्रोलॉजी अधिनियम की धारा 36:
लीगल मेट्रोलॉजी अधिनियम की धारा 36 बताती है कि कोई भी व्यक्ति अगर किसी प्री-पैक्ड वस्तु को उस दाम पर बेचते या वितरित करते हुए पाया जाता है जो कि पैकेज पर अंकित घोषणाओं के अनुरूप नहीं है उसे दंड दिया जा सकता है. उस पर पहले अपराध के रूप में 25,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
वहीं ऐसा अपराध दूसरी बार होने पर यह जुर्माना राशि 50,000 रुपए तक जा सकती है. इसके अतिरिक्त बार-बार इस तरह का अपराध करने पर 1 लाख तक का जुर्माना या फिर जेल की सजा का प्रावधान या फिर दोनों तरह के दंड दिए जा सकते हैं.
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