अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा यरुशलम को इज़राइल की राजधानी बनाए जाने के फैसले के विरोध में 21 दिसंबर 2017 को संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग की गयी. इस दौरान भारत सहित 100 से अधिक देशों ने डोनाल्ड ट्रम्प के इस फैसले के विरोध में वोट किया.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट करने वाले देशों को अनुदान में कटौती की धमकी दी थी. डोनाल्ड ट्रम्प की इस धमकी को दरकिनार करते हुए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का कुल 128 देशों ने समर्थन दिया.
मुख्य बिंदु
• संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का कुल 128 देशों ने समर्थन दिया जबकि नौ देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ में वोट किया और 35 देशों ने अपने आप को इससे अलग रखा.
• 193 सदस्यों वाले संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत निकी हेली ने महासभा के प्रस्ताव की आलोचना की थी.
• संयुक्त राष्ट्र महासभा में सदस्य देशों ने उस प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिसमें अमेरिका की ओर से येरुशलम को इज़रायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने को अस्वीकार्य किया गया.
विदित हो कि अमेरिका ने दिसंबर 2017 के आरंभ में अपनी घोषणा में कहा था कि वह यरुशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देंगे और अमेरिकी दूतावास को यरूशलम में स्थांतरित करेंगे. उनकी घोषणा के बाद लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और इसकी आलोचना भी की जा रही है.
संयुक्त राष्ट्र में हुई वोटिंग के बाद अमेरिकी एंबेसडर निक्की हेली ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र इसे हमेशा याद रखेगा. हमें यूएन में दुनिया का सबसे बड़ा योगदान देने के लिए बुलाया जाता है. हम इसे याद रखेंगे कि कुछ देशों ने अपने निजी लाभ हेतु हमारे प्रभाव का प्रयोग किया है."
यरुशलम के बारे में
यरूशलम को लेकर इज़रायल और फलस्तीन दोनों ही काफी संवेदनशील रहे हैं. दरअसल यरूशलम ईसाइयों, मुस्लिमों और यहूदियों के लिए बेहद पवित्र जगह है. यही वजह है कि चारों तरफ दीवारों से घिरे इस शहर को जिन्हें दुनिया के पवित्रतम स्थलों में शुमार किया जाता है. वैसे भी यह दुनिया के सबसे पुराने शहरों में एक है. हिब्रू में इसे येरुशलाइम और अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाता है.
इज़रायल यरुशलम को अपनी राजधानी बताता है, वहीं दूसरी तरफ फलस्तीन भी इजरायल को अपने भविष्य के राष्ट्र की राजधानी बताता है. संयुक्त राष्ट्र और विश्व के अधिकतर देश यरुशलम पर इज़रायल के दावे को मान्यता नहीं देते.
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