भारत के पुणे की निवासी शीतल राणे ने 12 फरवरी 2018 को थाईलैंड में एक विशेष विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया. शीतल राणे विश्व की पहली महिला बन गयी हैं जिन्होंने महाराष्ट्र की विशेष नऊवारी साड़ी पहन कर स्काईडाइविंग जैसे एडवेंचर को पूरा किया.
शीतल राणे (35 वर्षीय) ने यह रिकॉर्ड थाईलैंड के पट्टाया में बनाया. शीतल राणे का मानना था कि दुनिया के सबसे मशहूर टूरिस्ट रिजॉर्ट से दो बार स्काइडाइव करना अच्छे मौसम की वजह से ही संभव हो पाया.
शीतल राणे द्वारा पहनी गई साड़ी लगभग 8.25 मीटर लंबी थी, जो अन्य भारतीय साड़ियों से ज्यादा है. देश में साड़ी पहनने के अलग-अलग तरीके हैं, लेकिन महाराष्ट्रियन साड़ी पहनना सबसे मुश्किल माना जाता है.
शीतल राणे महाजन के बारे में
• शीतल महाराष्ट्र के पुणे की निवासी हैं.
• वे स्काईडाइविंग में 18 नेशनल और 6 से ज्यादा इंटरनेशनल रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं.
• वे अब तक विश्वभर में 704 बार जंप लगा चुकी हैं.
• शीतल राणे ने अप्रैल 2004 में एडवेंचर स्पोर्ट की शुरुआत की थी.
• उन्होंने बिना खास ट्रेनिंग के उत्तरी गोलार्ध पर -37 डिग्री टेम्परेचर में 2400 फीट से छलांग लगाई थी.
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• इसके बाद उन्होंने 2016 में एंटार्कटिका में 11,600 फीट से जंप किया.
• उस समय शीतल की आयु महज 23 वर्ष थी और ऐसा करने वाली वे दुनिया की पहली और यंगेस्ट महिला बनीं.
• अपने 14 वर्षों के एडवेंचर स्पोर्ट्स करियर में शीतल राणे सातों महाद्वीपों में स्काईडाइविंग कर चुकी हैं.
• शीतल ने नवम्बर 2011 में स्काईडाइवर वैभव से शादी की. शादी की सभी रस्में पुणे के 750 फीट ऊंचाई पर हॉट एयर बलून में हुई थीं.
• उन्हें एयरो क्लब ऑफ इंडिया द्वारा प्रतिष्ठित एफएआई साबिहा गोक्सेन मेडल के लिए नॉमिनेट किया जा चुका है.
स्काईडाइविंग
स्काईडाइविंग पैराशूट की सहायता से किसी विमान से बाहर छलांग लगाने और धरती पर वापस लौटने का एडवेंचर है. स्काईडाइविंग के इतिहास की शुरुआत आंद्रे-जैक्स गार्नरिन से होती है जिन्होंने 1797 में एक गर्म हवा के गुब्बारे से सफलतापूर्वक पैराशूट कूद पूरी की थी. सेना ने गुब्बारों के दल को और उड़ान में विमान के चालाक दल को आपातकालीन स्थितियों से बचाने के एक रास्ते के रूप में और बाद में युद्ध के मैदानों में सैनिकों को पहुंचाने के उपाय के रूप में स्काईडाइविंग तकनीक विकसित की थी. शुरुआती प्रतियोगिताएं कम से कम 1930 के दशक में शुरू हुई थीं और 1952 में यह एक अंतरराष्ट्रीय खेल बन गया.
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