ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2017 में भारत की खराब रैंकिंग : कारण और नीतिगत प्रतिक्रिया

Dec 20, 2017, 11:38 IST

भारत में बढ़ती भूखमरी का एक महत्वपूर्ण कारण योजनाओं और नीतियों का खराब कार्यान्वयन भी है.  अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के अनुसार  एकीकृत बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने महत्वपूर्ण उदेदेश्यों को हासिल नहीं किया है.

India’s poor ranking in 2017 Global Hunger Index: Reasons & Policy Response
India’s poor ranking in 2017 Global Hunger Index: Reasons & Policy Response

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) ने 12 अक्टूबर 2017 को '2017 ग्लोबल हंगर इंडेक्स : द इनइक्वालिटी ऑफ हंगर' नामक एक रिपोर्ट जारी की. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में  भारत का स्थान उत्तर कोरिया (93 वां), बांग्लादेश और इराक (78 वां) आदि 119 देशों में 100 से नीचे है.

भारत का जीएचआई स्कोर 31.4 'गंभीर' की श्रेणी में उच्चतम स्तर पर है  और सहारा के दक्षिण अफ्रीका का अनुसरण करते हुए दक्षिण एशिया को इस साल सबसे खराब प्रदर्शन क्षेत्र की श्रेणी में लाने के मुख्य कारकों में से एक है.
अतः इन हालातों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2017 में भारत की खराब रैंकिंग और भारत के खराब प्रदर्शन के पीछे के कारणों को समझने तथा अंतर्निहित मुद्दों को हल करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए हालिया कदमों को समझना बहुत जरुरी है.

भारत में लगातार बढ़ रही भूखमरी की समस्या की मुख्य वजह

गरीबी : भूखमरी की बढ़ती समस्या का मुख्य कारण है गरीबी. भूखमरी खाद्य विकल्पों को प्रतिबंधित करती है.यह भूख से होने वाली मौतों की एक मुख्य वजह है. विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 में देश की करीब 12% आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी. यह गणना 2015 में बहुपक्षीय एजेंसी द्वारा प्रस्तावित मिश्रित संशोधित संदर्भ अवधि (एमएमआरपी) की अवधारणा के आधार पर की गई थी. यदि विकास के मामले में क्षेत्रीय असमानताओं तथा खाद्य पदार्थों की लगातार बढ़ती कीमत के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में बसे पिछड़े जनजातीय लोग जो संतुलित भोजन नहीं प्राप्त कर पाते उन्हें इसमें शामिल किया जाय तो उनका प्रतिशत भारत में बहुत अधिक होगा.

बहुआयामी प्रकृति : वस्तुतः जल, स्वच्छता, खाद्य पदार्थों तक आम आदमी की पहुंच आदि से सम्बन्धित विभिन्न कारकों का परिणाम है भूखमरी और पोषण की कमी.एक व्यक्ति का पोषण भी लिंग, जाति, उम्र आदि जैसे जनसांख्यिकीय कारकों पर निर्भर करता है. उदाहरण के लिए  हमारे समाज में लड़कियों और वृद्ध व्यक्तियों के पोषण पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है.

अप्रभावी कार्यान्वयन : भारत में बढ़ती भूखमरी का एक महत्वपूर्ण कारण योजनाओं और नीतियों का खराब कार्यान्वयन भी है.  अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के अनुसार  एकीकृत बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) ने महत्वपूर्ण उदेदेश्यों को हासिल नहीं किया है.

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भारत की रैंकिंग पर बहस

कुछ नीति विशेषज्ञों के अनुसार, 2017 रैंकिंग में भारत के खराब प्रदर्शन को दो कारणों, अपनायी गयी कार्यप्रणाली और भारत की वैश्विक रैंकिंग की गणना करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आंकड़ों, की वजह से इसे वास्तविक रूप में नहीं दर्शाया गया है.

2017 जीएचआई का चार मानकीकृत संकेतकों के आधार पर औसत के रूप में गणना किया गया – वे चार संकेतक हैं - कुपोषित जनसंख्या का प्रतिशत,  पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का प्रतिशत, पांच वर्ष से कम उम्र के स्टंटिंग से पीड़ित  बच्चों का प्रतिशत और बाल मृत्यु दर. इस रैंकिंग में पांच साल से कम उम्र के बच्चों को 70.5% महत्व दिया गया है जो एक छोटी सी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और जो 5 प्रतिशत से अधिक हैं उनका 29.5% महत्व है, जो कुल जनसंख्या का 81.5% है. इस रैंकिंग में भारत की रैंकिंग को खराब तरीके से प्रतिबिंबित किया गया है.आलोचकों द्वारा एक और महत्वपूर्ण तर्क यह भी दिया गया है कि भारत की रैंकिंग 2012-13 के आंकड़ों पर भरोसा करती है, जबकि अन्य देशों की रैंकिंग ने हालिया आंकड़ों को ध्यान में रखा है.

यह भी तर्क दिया गया है कि  यदि इन दो 'विसंगतियों' को सही कर लिया गया होता तो भारत का प्रदर्शन 2017 जीएचआई में बेहतर होता.

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राष्ट्रीय पोषण रणनीति

एक नीतिगत प्रतिक्रिया के रूप में  राष्ट्रीय विकास परिषद ने व्यापक तरीके से भूख और पोषण की समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम नीति को अक्टूबर 2016 में शुरू किया. इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत की परिकल्पना को साकार करना है.

रणनीति द्वारा निर्धारित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए  30 नवंबर 2017 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 2017-18 से शुरू होने वाले 9046.17 करोड़ रुपये के तीन साल के बजट के साथ राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) की स्थापना को मंजूरी दी .

इस मिशन को 2017-18 से 2019-20 तक तीन चरणों में शुरू किया जाएगा. इसका फोकस कम उम्र के बच्चों, महिलाओं और किशोरावस्था के बच्चों में पोषण की कमी, एनीमिया को कम करना तथा वजन कम करना है. एनएनएम को उम्मीद है कि लगभग 10 करोड़ लोगों को चरणबद्ध तरीके से सभी राज्यों और जिलों से कवर किया जाएगा. इसके तहत 2017-18 में 315 जिलों तथा 2018-19 में 235 जिलों और शेष जिलों को 2019-20 में कवर किया जायेगा.

निष्कर्ष

खाद्य और पोषण संबंधी सुरक्षा प्रदान करने के लिए सितंबर 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को जारी किया गया. पोषण हेतु सरकार द्वारा दिया जाने वाला यह एक कानूनी अधिकार सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था. अपने महान उद्देश्यों के बावजूद भी इस  अधिनियम की प्रभावशीलता सीमित हो गई है क्योंकि यह "योग्य  परिवारों" के लिए केवल "सस्ती पहुंच" ही सुनिश्चित करवा पाती है और इसमें सार्वभौमिक अपील नहीं है. अभी ही यह समय है कि नीति निर्माताओं को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत भूखमरी से मुक्ति के अधिकार पर विचार करना चाहिए.

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