श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाती है. देशभर में आज यानी 13 अगस्त को नाग पंचमी मनाई जा रही है. कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए प्रोटोकॉल नियमों का पालन करते हुए मंदिरों में भक्तों के लिये कपाट खोले गए हैं.
इस पावन दिन विधि- विधान से नाग देवता की पूजा- अर्चना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक नागों को भी देवता के रूप में पूजा जाता है. नाग भगवान शिव को भी बहुत अधिक प्रिय होते हैं और सावन का माह में भगवान शिव को समर्पित होते हैं. इस पावन दिन नाग देवता की पूजा करने से भगवान शंकर भी प्रसन्न होते हैं.
नाग पंचमी पूजा की शुभ मुहूर्त
नाग पंचमी का त्योहार प्रत्येक वर्ष सावन माह की पंचमी तिथि पर मनाया जाता है. इस बार पंचमी तिथि 12 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 24 मिनट से आरंभ हो रही है जोकि 13 अगस्त को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि के हिसाब से नाग पंचमी का त्योहार 13 अगस्त के दिन ही मनाया जाएगा. नाग पंचमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 05 बजकर 49 मिनट से 08 बजकर 28 मिनट तक रहेगा.
नाग पंचमी का महत्व
इस दिन नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोषों से मुक्ति मिल जाती है. नाग देवता को घर का रक्षक भी माना जाता है. इस दिन नाग देवता की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है.
नाग देवता की पूजा
नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. परंतु इस दिन जीवित नाग की पूजा करने से बचना चाहिए. पूजा के लिए नाग के चित्र, आकृति या आटा, मिट्टी से बनें नाग का उपयोग करें. अगर घर के पास कोई नाग देवता का मंदिर नहीं है तो आप शिवलिंग के ऊपर बने नाग की भी पूजा करना उत्तम माना गया है.
इससे जुड़ी ये 5 अहम बातें
• नाग पंचमी पर कभी भी जीवित सांप की पूजा न करें, बल्कि इस दिन नाग देवता की मूर्ति या फोटो की पूजा करें. मंदिर में जाकर भी पूजन कर सकते हैं.
• हिंदु धर्म में नागों का विशेष महत्व है. इनकी पूजा पूरी श्रद्धा से की जाती है. बता दें कि नाग शिव शंकर के गले का आभूषण भी हैं और भगवान विष्णु की शैय्या भी.
• सावन के महीने में हमेशा झमाझमा बारिश होती है और नाग जमीन से बाहर आ जाते हैं. ऐसे में मान्यता के अनुसार, नाग देवता का दूध से अभिषेक किया जाता है और उनका पूजन किया जाता है. इससे वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.
• नागपंचमी के ही दिन अनेकों गांव व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं. गाय, बैल आदि पशुओं को इस दिन नदी, तालाब में ले जाकर नहलाया जाता है.
• मान्यता है कि नागपंचमी के दिन सर्पों को दूध से स्नान कराने और इनके पूजन से अक्षय-पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन सपेरों को विशेष रूप से दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है. कई घरों में प्रवेश द्वार पर नाग चित्र बनाने की भी परम्परा है. मान्यता है कि नागदेव की कृपा से वो घर हमेशा सुरक्षित रहता है.
नाग पंचमी का इतिहास: एक नजर में
भविष्यपुराण के अनुसार, सागर मंथन के दौरान नागों ने अपनी माता की बात नहीं मानी थी जिसके चलते उन्हें श्राप मिला था. नागों को कहा गया था कि वो जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाएंगे. घबराए हुए नाग ब्रह्माजी की शरण में पहुंच गए और उनसे मदद मांगने लगे. तब ब्रह्माजी ने कहा कि नागवंश में महात्मा जरत्कारू के पुत्र आस्तिक सभी नागों की रक्षा करेंगे. ब्रह्माजी ने यह उपाय पंचमी तिथि को ही बताया था. वहीं, आस्तिक मुनि ने सावन मास की पंचमी तिथि को नागों को यज्ञ में जलने से बचाया था. इन्होंने नागों के ऊपर दूध डालकर उन्हें बचाया था. मुनि ने उस समय कहा था कि जो भी पंचमी तिथि को नागों की पूजा करेगा उसे नागदंश से कोई डर नहीं रहेगा.
एक अन्य मान्यता के मुताबिक, जब समुंद्र मंथन हुआ था तब किसी को भी रस्सी नहीं मिल रही थी. इस समये वासुकि नाग को रस्सी की तरह इस्तेमाल किया गया था. जहां देवताओं ने वासुकी नाग की पूंछ पकड़ी थी वहीं, दानवों ने उनका मुंह पकड़ा था. मंथन में पहले विष निकला था जिसे शिव भगवान में अपने कंठ में धारण किया था और समस्त लोकों की रक्षा की थी. वहीं, मंथन से जब अमृत निकला तो देवताओं ने इसे पीकर अमरत्व को प्राप्त किया. इसके बाद से ही इस तिथि को नाग पंचमी के पर्व के तौर पर मनाया जाता है.
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन के लोगों की जानक नाग को हराकर बचाई थी. श्री कृष्ण भगवान ने सांप के फन पर नृत्य किया था. इसके बाद वो नथैया कहलाए थे. तब से ही नागों की पूजा की परंपरा चली आ रही है.
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