भारत की आजादी की बात जब भी होती है तो इसकी महत्वपूर्ण घटनाओं में 23 मार्च की तारीख को भारतवासी भला कैसे भूल सकते है. आज पूरा देश भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को नमन कर रहा है.
वर्ष 1931 में 23 मार्च का दिन हमेशा के लिए याद किया जाता रहेगा, क्योंकि 23 मार्च को ही अमर क्रन्तिकारी भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गयी थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शहीद दिवस के मौके पर महान स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की है. एक ट्वीट में मोदी ने कहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को भारत हमेशा याद रखेगा. उन्होंने कहा, ये वे महानुभाव हैं जिन्होंने हमारे स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय योगदान दिया.
India will always remember the sacrifice of Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru. These are greats who made an unparalleled contribution to our freedom struggle. pic.twitter.com/SZeSThDxUW
— Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2023
शहीद भगत सिंह से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:
शहीद भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गाँव में हुआ था जो तत्कालीन ब्रिटिश भारत और आज के समय में पाकिस्तान का भाग है. उनकी माता का नाम विद्यावती और पिता का नाम किशन सिंह संधू था.
वर्ष 1928 में, ब्रिटिश सरकार ने भारत में राजनीतिक स्थिति पर रिपोर्ट करने के लिए साइमन कमीशन की स्थापना की थी कुछ भारतीय राजनीतिक दलों ने आयोग का बहिष्कार किया क्योंकि इसकी सदस्यता में कोई भारतीय शामिल नहीं था जिसको लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए.
भगत सिंह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के एक प्रमुख सदस्य थे, जिसका बाद में नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) कर दिया गया था.
भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ:
जॉन सॉन्डर्स की हत्या: भगत सिंह और राजगुरु ने अंग्रेज अधिकारी ने सांडर्स को इस्लामिया कॉलेज के सामने गोली मारी थी. इस घटना के बैकअप प्लान का जिम्मा आजाद का था. राजगुरु और भगत सिंह दोनों ने सांडर्स को गोली मारी जिसके बाद सिपाही चानन सिंह भगत सिंह को पकड़ने की कोशिश की लेकिन आजाद ने उसे भी ढेर कर दिया.
इस घटना के बाद, भगत सिंह और राजगुरु, दोनों लोडेड रिवाल्वर लेकर अगले दिन तड़के घर से निकले और अपनी पोशाक बदल ली थी, भगत सिंह ने बाल कटवाए, अपनी दाढ़ी मुंडवा ली बालों पर टोपी पहन ली थी.
दिल्ली विधानसभा बम कांड: भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को प्रेरित किया. भगत सिंह की गिरफ्तारी दिल्ली की सेंट्रल असैंबली में हुई थी. भगत और और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को असैंबली की खाली जगह पर दो बम फोड़े साथ ही भगत सिंह ने कई फायर भी किये और अपनी गिरफ्तारी दी.
इस धमाके के समय सदन में साइमन कमीशन वाले सर जॉन साइमन मोतीलाल नेहरू मोहम्मद अली जिन्ना, आरएम जयकर आदि मौजूद थे. 12 जून 1929 को भगत को असैंबली ब्लास्ट केस के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी, लेकिन सांडर्स मर्डर केस के लिए उन्हें लाहौर की मियांवाली जेल शिफ्ट कर दिया गया था.
सांडर्स मर्डर केस में 7 अक्टूबर 1929 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गयी थी.
फांसी की घटना:
भगत सिंह लाहौर जेल की कोठरी नंबर-14 में बंद थे, BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक भगत सिंह अपने वकील प्राण नाथ मेहता द्वारा दी गयी पुस्तक 'रिवॉल्यूशनरी लेनिन' को पढ़ रहे थे.
भगत को पता था कि 24 मार्च को उन्हें फांसी दी जाएगी लेकिन जब उन्हें पता चला कि उन्हें 23 की शाम को ही फांसी दी जाएगी तो उन्होंने कहा था कि क्या आप मुझे इस किताब (रिवॉल्यूशनरी लेनिन) का एक अध्याय भी खत्म नहीं करने देंगे?
23 की शाम फांसी के बाद उनके शव को जेल के पीछे की दीवार को तोड़कर ले जाया गया, क्योंकि जेल के सामने भारी भीड़ थी. अंतिम संस्कार रावी के तट पर होना था, लेकिन नदी में पानी कम होने के कारण, सतलज के किनारे उनके शवों को जलाने का फैसला लिया गया था.
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