सम–विषम योजना और दिल्ली में प्रदूषण

May 3, 2016, 17:43 IST

प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से दिल्ली सरकार ने 15 अप्रैल 2016 से 30 अप्रैल 2016 तक सम– विषम योजना (ऑड– ईवन स्कीम) का दूसरा चरण लागू किया था.

odd even in delhi

विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है. दुनिया का पांचवे मेगाशहर के रूप में जानी जानी वाली दिल्ली की आबादी 258 लाख है और यह लगातार बढ़ रही है. एक अध्ययन के अनुसार इस बढ़ोतरी के साथ यहां की सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या जो 2010 में 4.7 मिलियन थी वह 2030 तक 26 मिलियन हो जाएगी. वर्ष 2001 से 2011 के दौरान दिल्ली में बिजली की कुल खपत में 57 फीसदी का इजाफा हुआ था.

प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से दिल्ली सरकार ने 15 अप्रैल 2016 से 30 अप्रैल 2016 तक सम– विषम योजना (ऑड– ईवन स्कीम) का दूसरा चरण लागू किया था.

1 जनवरी से 15 जनवरी 2016 तक चले इस योजना के पहले चरण को जबरदस्त सफलता मिली थी, योजना का उद्देश्य शहर की सड़कों पर वाहनों के प्रदूषण और यातायात की भीड़ को कम करना था.

इस योजना के तहत विषम संख्या के पंजीकरण वाले चार–पहिया वाहन विषम तारीखों को और सम संख्या के पंजीकरण वाले सम तारीखों को सड़कों पर आएंगी. यह नियम सुबह 8 बजे से शाम के 8 बजे तक लागू रहेगा. हालांकि यह योजना रविवारों को लागू नहीं होगी.

इसके अलावा योजना के तहत, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों और अन्य वीआईपी की गाड़ियों को शामिल नहीं किया गया. इसके अलावा, महिलाओँ द्वारा चलाए जाने वाली गाड़ियों, आपातकालीन वाहनों, सीएनजी वाहनों और यूनिफॉर्म में स्कूली बच्चों को ले जाने वाली कारों को भी इस नियम के दायरे से बाहर रखा जाएगा.

सम– विषम योजना के नियम दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों पर लागू होंगें. नियम का उल्लंघन करने पर 2000 रुपयों का जुर्माना लगाया जाएगा.

दूसरे चरण को सफल बनाने के लिए राज्य सरकार ने 5000 से अधिक नागरिक रक्षा स्वयंसेवकों को विभिन्न यातायात बिन्दुओं पर तैनात किया है जो लोगों को योजना के नियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे .

क्या दिल्ली में वायु प्रदूषण कम हुआ?

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal (NGT)) के निर्देश पर सीपीसीबी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार सम– विषम योजना के दूसरे चरण के दौरान वायु प्रदूषकों में कोई कमी नहीं आई.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को पूछा कि क्यों आप सरकार की बहुचर्चित यातायात राशन योजना राजधानी में प्रदूषण के स्तर को कम करने में सक्षम नहीं हुई और परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानकों को प्राप्त करने के लिए उठाए गए कदम काम क्यों नहीं आए.

इस संबंध में आईए प्रासंगिक आंकड़ों पर गौर करें -

ओजोन

सफर (SAFAR) के आंकड़ों के अनुसार 15 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच सम– विषम योजना के अंतिम दिन यानि 30 अप्रैल को ओजन का स्तर जिसे वैज्ञानिकों ने दिल्ली में गर्मियों का सबसे महत्वपूर्ण प्रदूषक बताया है, 88 पार्ट प्रति बिलियन या 176 माइक्रोग्राम्स प्रति घन मीटर (µg/m³) था. 1– 15 अप्रैल के दौरान तुलना की जाए तो 6 अप्रैल को ओजोन का स्तर 60 पार्ट प्रति बिलियन या 120 µg/m³ था.

24 अप्रैल को ओजोन का स्तर 75 पार्ट प्रति बिलियन या 150 µg/m³ पर पहुंच गया, यह इस योजना के तहत पिछले दिन के मुकाबले पहला सबसे तेज उछाल रहा. 23 अप्रैल को इसका स्तर 62 पार्ट प्रति बिलियन या 124 µg/m³ था.

इस आंकड़ों को अप्रैल 2015 के आंकड़ों से तुलना करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले वर्ष 24 अप्रैल को लगभग ऐसी ही स्थिति थी.ओजोन का स्तर 90 पार्ट प्रति बिलियन या 180 µg/m³ था, अप्रैल 15–30 के बीच सबसे अधिक.

पार्टिकुलेट मैटर (पीएम)– 1

सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च ( सफर– SAFAR ) ने भी बारीक PM 1 या 1 माइक्रॉन से छोटे आकार वाले कणों की निगरानी की.ये कण फेफड़ों के ऊतकों और हृदय मार्ग में बहुत गहरे बैठ जाने के लिए जाने जाते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 15–30 के बीच PM 1 का स्तर 30 अप्रैल को करीब 78 µg/m³ था, जबकि 1–5 अप्रैल के बीच PM 1 का स्तर 3 अप्रैल को करीब 70 µg/m³ दर्ज किया गया था.
PM 2.5

वैज्ञानिकों के अनुसार PM 2.5 प्रदूषक सीधे वाहनों के दहन के साथ जुड़ा हुआ है. इसमें 2.5 माइक्रॉन्स से छोटे आकार वाले सभी कण आते हैं.SAFAR के अनुसार अप्रैल 15–30 के बीच PM 2.5 का स्तर अप्रैल 30 को सबसे अधिक रहा और यह 190 µg/m³ पर पहुंच गया. वर्ष 2015 में इसी तारीख को दर्ज किए गए अपने स्तर से यह लगभग दुगुना था.

इस वर्ष 1–15 अप्रैल के बीच, सम– विषम योजना शुरु होने से तुरंत पहले, 3 अप्रैल को PM 2.5 का स्तर 137 µg/m³ दर्ज किया गया था.

PM 10

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण केंद्र (डीपीसीसी) का 10 माइक्रॉन्स से छोटे आकार वाले बड़े कणों के लिए आंकड़ा जो वाहन और अन्य प्रकार के प्रदूषण जैसे सड़क की धूल, कचरे और अन्य प्रकार की आग से निकलने वाला धुंआ से संबंधित है, अप्रैल 2016 के अंतिम सप्ताह के दौरान इसमें सबसे अधिक तेजी दिखाई दी.

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण केंद्र (डीपीसीसी) के भूतपूर्व सदस्य सचिव डॉ. बी. सेनगुप्ता के अनुसार 2016 में PM 10 के स्तरों में कथित बढ़ोतरी तापमान में अचानक हुई बढ़ोतरी से लगने वाली आग से संबंधित हो सकता है.

वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई– AQI)

एक्यूआई के दैनिक सारांश के अनुसार दिल्ली के सात स्टेशनों से 23– 28 अप्रैल 2016 के बीच एक्यूआई में लगातार वृद्धि हुई और यह 262 से 332 हो गया. 29 और 30 अप्रैल को एक्यूआई में मामूली गिरावट दिखी और यह क्रमशः 314 और 316 दर्ज किया गया.

प्रदूषण क्यों नहीं कम हुआ ?

सबसे पहले 2015 के आंकडे से 2016 में प्रदूषकों के स्तरों के आंकड़ों की तुलना करते समय ध्यान रखा जाना चाहिए. सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरमेंट (सीएसई) की अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है,"  चूंकि गर्मी के प्रदूषकों का पैटर्न सर्दियों के प्रदूषकों के पैटर्न से अलग होता है और इसमें सिर्फ पार्टिकुलेट्स का ही योगदान नहीं होता.वर्ष 2015 में इस अवधि के दौरान काफी वर्षा हुई थी, जिसकी वजह से प्रदूषकों का स्तर कम हुआ था".

दूसरी बात योजना का प्रभाव अल्प–कालिक आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए. योजना का प्रभाव गर्मी के पूरे मौसम के साथ 15 दिनों की तुलना करने के बाद ही वैज्ञानिक तरीके से आंका जा सकता है.

तीसरी बात जैसा की चीन के अनुभव से दुनिया को पता चला कि अकेले सम– विषम योजना से प्रदूषण को कम करने का उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकता. इसके लिए अन्य उपाय भी करने होंगे जैसे– कुशल परिवहन नीति के साथ योजना की सख्ती से निगरानी.

चौथी बात पहले चरण के अनुभव के बाद कई लोगों ने सम– विषम कैब बुक किया. इसकी वजह से सड़कों पर कैब की संख्या बढ़ी और इसकी वजह से सड़कें जाम हुईं और वायु प्रदूषण पर योजना का बहुत कम प्रभाव पड़ा.

पांचवीं बात आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार प्रदूषण स्रोतों के पदानुक्रम में वाहनों का स्थान चौथा है. ये वाहन दिल्ली की हवा में PM 2.5 में 20 फीसदी और PM 10 में 9 फीसदी का योगदान करते हैं.

शहर का सबसे बड़ा प्रदूषक सड़क की धूल है. PM 2.5 में 38 फीसदी और PM 10 में 56 फीसदी इसका ही योगदान होता है. दोपहिया वाहन, जिन्हें सम– विषम नियम के दायरे से बाहर रखा गया था, वाहनों द्वारा होने वाले सभी PM 10 और PM 2.5 में 33 फीसदी योगदान करते हैं.

निष्कर्ष

सम– विषम योजना प्रभावी रही या नहीं इस बात को एक तरफ रख दें तो यह निश्चित है कि इस योजना ने न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे भारत में अपना प्रभाव छोड़ा है. जैसे अप्रैल 2016 में मनाली प्रशासन ने मनाली– लेह राजमार्ग पर यातायात कम करने के लिए सम–विषम लागू करने का फैसला किया था. इसलिए सम–विषम योजना की ट्रायल अवधि ने देश पर एक से अधिक तरीके से प्रभाव डाला है.

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