Birsa Munda Jayanti 2021: प्रधानमंत्री मोदी ने रांची में भगवान बिरसा मुंडा संग्रहालय का उद्घाटन किया
Birsa Munda Jayanti 2021: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिरसा संग्रहालय (Birsa Munda museum) का ऑनलाइन उद्घाटन किया. मोदी सरकार ने हाल में घोषणा की थी कि 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा.

Birsa Munda Jayanti 2021: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले आदिवासी संग्रहालय को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन किया. यह संग्रहालय झारखंड की राजधानी रांची में बनाया गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ साल पहले आदिवासी समाज की परंपराओं को सहेजने के लिए आदिवासी संग्रहालय खोलने की बात कही थी.
बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को स्वतंत्र राज्य के रुप में अस्तित्व में आया झारखंड राज्य अपना स्थापना दिवस मना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिरसा संग्रहालय (Birsa Munda museum) का ऑनलाइन उद्घाटन किया. मोदी सरकार ने हाल में घोषणा की थी कि 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा.
PMO ने क्या कहा?
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने एक बयान में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा जनजातीय समुदायों के अमूल्य योगदान, विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके बलिदान को रेखांकित किया है.
I have spent a large part of my life with tribal brothers & sisters and children. I have been a witness to their joys & sorrows, daily lives and the necessities of their lives. So, today is also an emotional day for me personally: PM Narendra Modi on Janjatiya Gaurav Diwas pic.twitter.com/cbSohWelFa
— ANI (@ANI) November 15, 2021
पीएमओ ने कहा कि ‘भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय’ झारखंड राज्य सरकार के सहयोग से रांची के पुराने केंद्रीय कारावास में बनाया गया है, जहां बिरसा मुंडा ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. पीएमओ ने कहा कि यह राष्ट्र और जनजातीय समुदायों के लिए उनके बलिदान को श्रद्धांजलि होगी.
PM ने ट्वीट में क्या कहा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी. उन्होंने ट्वीट किया कि भगवान बिरसा मुंडा जी को उनकी जयंती पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि. वे स्वतंत्रता आंदोलन को तेज धार देने के साथ-साथ आदिवासी समाज के हितों की रक्षा के लिए सदैव संघर्षरत रहे. देश के लिए उनका योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा.
प्रधानमंत्री ने क्या कहा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह निर्णय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों, वीरांगनाओं के चरणों में समर्पित करता हूं. मैंने जीवन का बड़ा हिस्सा आदिवासी भाई, बहनों और बच्चों के साथ बिताया है. उनकी जिंदगी की जरूरतों का साक्षी रहा हूं, आज का दिन मेरे लिए बहुत भावुक करने वाला है.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज ही के दिन श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की दृढ़ इच्छाशक्ति से झारखंड अस्तित्व में आया. अटल जी ने अलग से आदिवासी कल्याण मंत्रालय का गठन किया. इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि आधुनिकता के नाम पर विविधता पर हमला, प्राचीन पहचान और प्रकृति से छेड़छाड़, भगवान बिरसा जानते थे कि ये समाज के कल्याण का रास्ता नहीं है.
पीएम ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय के लिए पूरे देश के जनजातीय समाज, भारत के प्रत्येक नागरिक को बधाई देता हूं. ये संग्रहालय, स्वाधीनता संग्राम में आदिवासी नायक-नायिकाओं के योगदान का, विविधताओं से भरी हमारी आदिवासी संस्कृति का जीवंत अधिष्ठान बनेगा.
संस्कृति का जीवंत अधिष्ठान बनेगा संग्रहालय
प्रधानमंत्री ने कहा कि ये संग्रहालय, स्वाधीनता संग्राम में आदिवासी नायक-नायिकाओं के योगदान का, विविधताओं से भरी हमारी आदिवासी संस्कृति का जीवंत अधिष्ठान बनेगा. वे आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे, वो बदलावों की वकालत करते थे, उन्होंने अपने ही समाज की कुरीतियों के, कमियों के खिलाफ बोलने का साहस दिखाया.
बिरसा मुंडा: एक नजर में
केंद्र सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के तौर पर मनाने की घोषणा की है. बिरसा मुंडा की जयंती मुंडा का जन्म 1875 में अविभाजित बिहार के आदिवासी क्षेत्र में हुआ था. उनका अधिकांश बचपन अपने माता-पिता के साथ एक गांव से दूसरे गांव में घूमने में बीता था. वे छोटानागपुर पठार क्षेत्र में मुंडा जनजाति के थे.
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सलगा में अपने शिक्षक जयपाल नाग के मार्गदर्शन में हासिल की थी. 1886 से 1890 के दौरान बिरसा मुंडा सरदारों के आंदोलन के करीब थे. इस आंदोलन ने उन पर गहरा प्रभाव छोड़ा और वो मिशनरी विरोधी और सरकार विरोधी कार्यक्रम से जुड़ गए. इसके बाद 1890 में जब उन्होंने चाईबासा छोड़ा, तब तक बिरसा आदिवासी समुदायों के ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन में भी शामिल हो गए थे.
उन्होंने 01 अक्टूबर 1894 को अंग्रेजों से लगान (कर) माफी के लिए आंदोलन शुरू किया. उन्हें जिसके लिए 1895 में गिरफ्तार कर लिया गया और हजारीबाग केंद्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा सुनाई गई. सजा खत्म होने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का आवाहन किया. उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन तथा धर्मांतरण गतिविधियों के खिलाफ आदिवासियों को लामबंद किया था. साल 1900 में रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी.
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