शनि ग्रह और उसके चंद्रमा टाइटन की तेजी से बढ़ रही है आपसी दूरी

Jun 10, 2020, 18:11 IST

चंद्रमा अपने संबद्ध ग्रहों से दूर जाना शुरू कर देता है क्योंकि जैसे-जैसे कोई चंद्रमा अपनी परिक्रमा करता है, इसका गुरुत्वाकर्षण संबद्ध ग्रह पर अपना प्रभाव डालता है जो उस ग्रह पर एक अस्थायी उभार उत्पन्न करता है, जैसे-जैसे वह चंद्रमा अपने ग्रह के पास से गुजरता है.

Saturn moon Titan drifting away faster than previously expected in Hindi
Saturn moon Titan drifting away faster than previously expected in Hindi

नासा के वैज्ञानिकों और इटालियन अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा किए गए एक शोध ने समस्त शनि प्रणाली के साथ-साथ अन्य चंद्रमाओं और ग्रहों के संबंध में अपने निष्कर्ष पेश किये हैं. हमारा चंद्रमा भी हर साल पृथ्वी से थोड़ा दूर चला जाता है और अन्य चंद्रमा भी अपने ग्रहों से इसी तरह दूर जा रहे हैं.

वैज्ञानिकों ने पहले यह सोचा था कि वे जानते हैं कि शनि ग्रह का चंद्रमा टाइटन किस दर से अपने ग्रह से दूर जा रहा है, लेकिन नासा के कैसिनी स्पेसक्राफ्ट के डेटा की खोज के अनुसार, यह पाया गया है कि टाइटन पहले से अनुमानित दर से सौ गुना तेजी से अपने ग्रह से दूर जा रहा है. यह दूरी हर साल लगभग 4 इंच (11 सेंटीमीटर) तक हो सकती है.

क्यों चंद्रमा अपने संबद्ध ग्रहों से दूर चला जाता है?

चंद्रमा अपने संबद्ध ग्रहों से दूर जाना शुरू कर देता है क्योंकि जैसे-जैसे कोई चंद्रमा अपनी परिक्रमा करता है, इसका गुरुत्वाकर्षण संबद्ध ग्रह पर अपना प्रभाव डालता है जो उस ग्रह पर एक अस्थायी उभार उत्पन्न करता है, जैसे-जैसे वह चंद्रमा अपने ग्रह के पास से गुजरता है.

समय के साथ, सबसाइडिंग और बल्जिंग (धसकने और उभार) द्वारा बनाई गई यह ऊर्जा, ग्रह से चंद्रमा तक स्थानांतरित होती है और इसे आगे और बाहर की ओर धकेलती रहती है. हमारा अपना चंद्रमा प्रत्येक वर्ष पृथ्वी से 1.5 इंच (3.8 सेंटीमीटर) दूर होता जा रहा है.

इस नई खोज का क्या मतलब है?

जबकि वैज्ञानिकों को यह पता है कि हमारा सौर मंडल बनने के शुरुआती दिनों में, 4.6 अरब साल पहले शनि ग्रह का गठन हुआ था लेकिन इस संबंध में अधिक अनिश्चितता रही है कि, इस ग्रह के छल्ले (रिंग) और इसके 80 से अधिक चंद्रमाओं की प्रणाली कब बनी थी.

वर्तमान में टाइटन शनि से 1.2 मिलियन किलोमीटर (7,59,000 मील) दूर है. इस दूरी की संशोधित तिथि ने संकेत दिया है कि यह चंद्रमा शनि के बहुत करीब से दूर जाना शुरू हुआ था, जिसका अर्थ है कि, शनि ग्रह की समस्त प्रणाली पहले की तुलना में अधिक तेजी से फैली है.

नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित लेख के मुख्य लेखक वालेरी लैनी के अनुसार, यह निष्कर्ष शनि प्रणाली की सही उम्र और इसके चंद्रमाओं के गठन के बारे में अत्यधिक बहस वाले प्रश्न के लिए अवश्य  ही एक नई पहेली बन गया है.

लैनी ने PSL विश्वविद्यालय की पेरिस ऑब्जर्वेटरी में शामिल होने से पहले दक्षिणी कैलिफोर्निया में स्थित नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में एक वैज्ञानिक के तौर पर शोध किया था.

टाइटन की यह बढ़ती दूरी नए सिद्धांत की पुष्टि करती है

टाइटन इस बढ़ती हुई दूरी की दर की पहचान करने वाले निष्कर्षों ने एक नए सिद्धांत को भी  महत्वपूर्ण पुष्टि प्रदान की है जो भविष्यवाणी करता है और यह बताता है कि शनि ग्रह अपने चंद्रमा की परिक्रमाओं को कैसे प्रभावित करता है.

वैज्ञानिकों ने पिछले 50 वर्षों के लिए एक ही फॉर्मूला लागू किया है ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि कोई चंद्रमा अपने ग्रह से कितनी तेजी से दूर जाता है. इस दर का उपयोग चंद्रमा की आयु निर्धारित करने के लिए भी किया जा सकता है. ये प्राचीन सिद्धांत और फ़ॉर्मूले, जिन पर उक्त निष्कर्ष आधारित हैं, सौर मंडल के सभी बड़े और छोटे चंद्रमाओं पर लागू किये गए थे.

इन प्राचीन सिद्धांतों ने यह मान लिया कि शनि जैसी प्रणाली में, जिसमें दर्जनों चंद्रमा हैं, टाइटन जैसे बाहरी चंद्रमा, अपने ग्रह के करीब स्थित चंद्रमाओं की तुलना में धीरे-धीरे बाहर की ओर पलायन करते हैं क्योंकि वे अपने मेजबान/ संबद्ध ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से दूर होते हैं.

लेकिन चार साल पहले, जिम फुलर, वर्तमान में कैल्टेक के एक सैद्धांतिक एस्ट्रोफिजिसिस्ट, ने उन सिद्धांतों को ख़ारिज करने वाले शोध प्रकाशित किए थे. फुलर के सिद्धांत ने भविष्यवाणी की थी कि, बाहरी चंद्रमा भी आंतरिक चंद्रमाओं जैसी समान दर पर बाहर की ओर पलायन कर सकते हैं क्योंकि वे अपने ऑर्बिट पैटर्न के एक अलग हिस्से में स्थित होते हैं जो सम्बद्ध ग्रह के विशेष हिस्से के दोलन से जुड़े होते हैं और इनकी ऊर्जा चंद्रमा को बाहर की ओर खिसकाती है.

नए पेपर के सह-लेखक फुलर ने यह कहा कि नए मापों से अनुमान लगाया गया है कि इस प्रकार की  ग्रह-चंद्रमा की परस्पर क्रियायें प्रमुख हो सकती हैं और जोकि पूर्व अपेक्षाएं हैं, वे कई प्रणालियों पर भी लागू हो सकती हैं जैसेकि बहिर्ग्रह (एक्सोप्लैनेट) - जो हमारे सौर मंडल के बाहर हैं, अन्य ग्रह-चंद्रमा प्रणालियां और यहां तक ​​कि बाइनरी स्टार सिस्टम, जहां तारे एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं.

इन निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए, लेखक ने कैसिनी छवियों की पृष्ठभूमि पर तारों का नक्शा बनाया था और टाइटन की स्थिति का पता लगाया था. उन्होंने अपने निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए एक स्वतंत्र डेटा सेट: कैसिनी द्वारा एकत्र किए गए रेडियो साइंस डेटा के साथ उन निष्कर्षों की तुलना की थी.

अंतरिक्ष यान ने वर्ष 2006 से वर्ष 2016 के बीच दस करीबी उड़ानों के दौरान पृथ्वी पर रेडियो तरंगें  भेजीं. वैज्ञानिकों ने तब यह अनुमान लगाने के लिए अध्ययन किया कि टाइटन की कक्षा कैसे विकसित हुई और कैसे अपने परिवेश के साथ टाइटन की परस्पर क्रिया द्वारा इसकी संकेत आवृत्ति बदल गई थी.

इटली की बोलोग्ना यूनिवर्सिटी के सह-लेखक, पाओलो टोर्टोरा, जो कैसिनी रेडियो साइंस टीम के सदस्य भी हैं और जिन्होंने इटालियन अंतरिक्ष एजेंसी के समर्थन से इस अनुसंधान में अपना सहयोग दिया था, ने कहा कि दो पूरी तरह से अलग डेटा सेटों का उपयोग करके, हासिल किये गये ये निष्कर्ष आपस में पूरी तरह मेल खाते थे और जिम फुलर के उस सिद्धांत के साथ भी सहमत थे जिसके द्वारा टाइटन के अधिक तेज़ स्थानान्तरण की भविष्यवाणी की गई थी.

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