वैज्ञानिकों के समूह ने इस रहस्य का पता लगाने में सफलता प्राप्त की है कि पिचर प्लांट मांसाहारी कैसे बने. वैज्ञानिकों द्वारा इस बात की विशेष खोज की गयी कि विश्व में भिन्न-भिन्न प्रकार के पिचर प्लांट जन्म लेते हैं लेकिन आगे चलकर वे एक जैसे क्यों दिखते हैं.
इस संदर्भ में 6 फरवरी 2017 को नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन पत्रिका में लेख प्रकाशित हुआ.
खोज के मुख्य बिंदु
• इसमें पाया गया कि मांसाहारी पौधा बनने के कुछ चुनिंदा मार्ग ही होते हैं.
• तीन प्रकार की प्रजातियों पर किये गये शोध में पाया गया कि मांसाहारी बनने की प्रक्रिया लगभग एक समान है. जिन तीन प्रजातियों पर प्रयोग किया गया वे हैं – सेफ़ालोटस (ऑस्ट्रेलियन पिचर प्लांट), नेपेनथीस अलाटा (एशियन पिचर प्लांट) एवं सेरासेनिया परपेरिया (अमेरिकन पिचर प्लांट).
• सेफ़ालोटस के संपूर्ण जीनोम पर किये जाने वाले प्रयोग से पता चला कि तीनों प्रजातियों में एक समान आनुवांशिक विश्लेषण शामिल हैं.
• विश्लेषण में पाया गया कि यह सभी पौधे मांसाहारी बनने के लिए एक ही आनुवांशिक प्रोटीन का प्रयोग करते हैं जिससे वे अपने शिकार को पचा पाते हैं.
• इनके पाचन एंजाइम स्वयं को विभिन्न बीमारियों एवं विषमताओं से बचाने के लिए स्वयं-रक्षा भी करते हैं. इन एंजाइम में चिटिनेस शिकार के शरीर से चीटिन एवं पर्पल एसिड अलग करते हैं.
• चौथी मांसाहारी प्रजाति ड्रोसेरा एडील जो कि पिचर प्लांट नहीं है, उसमें भी इसी प्रकार के विकास मार्ग पाए गये.
पिचर प्लांट
• यह अलग-अलग प्रकार के मांसाहारी प्लांट होते हैं.
• इनकी एक विशेष प्रकार की पत्तियां होती हैं जिन्हें पिट्फॉल ट्रैप भी कहा जाता है. यह इस प्लांट द्वारा अपने शिकार को फांसने का एक जरिया है जिससे शिकार अंदर जाकर एक डाइजेस्टिव लिक्विड से भर जाता है.
• किसी कीट को पचाने के लिए पादप एक स्रवित द्रव से पाचन क्रिया करता है और दूसरी विधि में जीवाणुओं की सक्रियता के परिणामस्वरूप दूसरी दशा में कीटों का अपक्षीणन और सड़न होता है.
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