दक्षिण कोरिया ने 22 नवंबर 2016 को जापान के साथ उत्तर कोरिया पर खुफिया जानकारी को साझा करने के लिए सौदे को मंजूरी दे दी. दक्षिण कोरिया के संसद में समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद यह प्रभावी हो जाएगा. जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (जीएसओएमआईए) के नाम से जानी जाने वाली इस संधि पर दक्षिण कोरिया के सियोल में सहमति बनी. यह संधि दोनों देशों के बीच प्योंगयांग परमाणु कार्यक्रम पर सैन्य खुफिया जानकारी साझा करने में मदद करेगी.
यह सौदा दोनों देशों की कथित खुफिया तंत्र के लाभ उठाने के लिए किया गया है. जापान के मामले में यह एक हाईटेक निगरानी है और दक्षिण कोरिया में, यह उत्तर कोरिया में मानवीय खुफिया तंत्र या जासूस. अब तक, दोनों देशों ने अमेरिका के माध्यम से खुफिया रिपोर्ट साझा की थी जिसे संभावित तात्कालिक खतरों का सामने करने में बोझिल प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा था. वर्ष 2014 में किए गए एक समझैते के तहत ये अमेरिका के जरिए उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर खुफिया रिपोर्ट साझा कर रहे थे.
इससे पहले, दोनों देश वर्ष 2012 में भी ऐसा ही एक समझौता करना चाहते थे लेकिन घरेलू विरोध के कारण दक्षिण कोरिया ऐसा नहीं कर सका था.
विवाद:
इस सौदा का दक्षिण कोरिया में काफी लोगों और विपक्षी दल ने बड़े पैमाने पर विरोध किया. दक्षिण कोरिया के मामले में, सौदा विवादास्पद है क्योंकि देश को आज भी युद्ध के समय जापानियों द्वारा किए गए अत्याचार याद हैं. देश आज भी 20वीं सदी (1910 और 1945 के बीच) के पहले भाग में जापान के औपनिवेशिक शासन पर जापान विरोधी भावना रखता है.
दक्षिण कोरिया की मुख्य विपक्षी पार्टी ने इस सौदे को अपमानजनक और देशद्रोही सौदा बताया है. उन्होंने संसद में समझौते के पारित होने पर रक्षा मंत्री हान मिन–कू पर महाभियोग चलाने की भी धमकी दी है.
उत्तर कोरिया ने इस संधि को खतरनाक करार दिया है क्योंकि इससे कोरियाई प्रायद्वीप में एक बार फिर से जापान के आक्रमण का दरवाजा खुल सकता है.
दूसरी तरफ, दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री ने फैसला का बचाव करते हुए इस सौदे को उत्तर कोरिया से होने वाले सैन्य खतरे के कारण अनिवार्य बताया है.
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