देश की सर्वोच्च न्यायालय ने 01 नवंबर 2017 को चुनाव आयोग की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सजायाफ्ता सांसदों-विधायकों के मामलों की सुनवाई के लिए पृथक कोर्ट की वकालत की.
चुनाव आयोग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में सजा प्राप्त नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबन्ध की भी मांग की गयी. सर्वोच्च न्यायालय ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए स्पेशल कोर्ट में इन केसों की सुनवाई की बात कही.
भारतीय नौसेना को 111 हेलिकॉप्टर देने का प्रस्ताव मंजूर
मुख्य बिंदु
• सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह यह स्पष्ट करे कि इस प्रकार के फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना में कितने धन की आवश्यकता होगी तथा इसके निर्माण में कितना समय लगेगा.
• सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए केंद्र सरकार को 6 सप्ताह का समय दिया है.
• न्यायालय ने कहा कि विशेष अदालतों में न्यायिक अधिकारियों, पब्लिक प्रॉसीक्यूटर, कोर्ट स्टाफ की नियुक्ति और इंफ्रास्ट्रक्चर सुप्रीम कोर्ट ही संभालेगा.
• सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2014 में आदेश दिया था कि नेताओं के खिलाफ केस का ट्रायल एक साल में पूरा होना चाहिए. इस पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा कि 2014 के चुनाव के हलफनामों के अनुसार 1581 सांसदों-विधायकों पर केस दर्ज हैं.
• सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को छह सप्ताह का समय देते हुए कहा कि सरकार यह बताए कि 2014 के बाद क्या किसी मौजूदा या पूर्व सांसद-विधायक पर केस दर्ज हुआ है? उनके निपटारे की स्थिति क्या है? तथा कितनों में फैसले हुए हैं?
सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि निचली अदालतों में प्रत्येक अदालत के पास चार हजार से अधिक मामले लंबित हैं. नेताओं से जुड़े मामलों के लिए विशेष तौर पर न्यायिक अधिकारी नहीं लगाएंगे तो एक साल में ट्रायल पूरा करना मुश्किल होगा.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation