उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 28 मार्च 2017 को राज्य में अगले चार महीनों के लिए खनन पर पूर्ण पाबंदी लगाये जाने का आदेश दिया.
अदालत ने सरकार को खनन के संदर्भ में उच्च स्तरीय समिति का गठन करने का निर्देश भी दिया. सरकार से कहा गया कि यह समिति चार माह में अंतरिम रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे. रिपोर्ट में बताया जय कि खनन की अनुमति दी जा सकती है अथवा नहीं.
याचिका
उत्तराखंड स्थित बागेश्वर निवासी नवीन चंद्र पंत ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि सिरमौली, गड़वा, भारखंडे, अधिलिया आदि गांवों में पहाड़ों पर अवैध खड़िया खनन किया जा रहा है. याचिका में कहा गया कि खनन माफिया द्वारा लीज़ की आड़ लेकर ग्रामीणों की भूमि, चरागाह, पेयजल स्रोत को बर्बाद किया जा रहा है जिससे जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इस मामले में जिला प्रशासन की रिपोर्ट में भी अवैध खनन की पुष्टि की गयी.
उच्च न्यायालय का आदेश
वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की खंडपीठ ने 28 मार्च 2017 को इस मामले में ऐतिहासिक फैसला देते हुए पूरे उत्तराखंड में खनन पर पाबंदी लगाने का आदेश जारी किया.
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि खनन से हिमालयी क्षेत्र में पहाड़, नदियां, ग्लेशियर, तालाब, जंगल तबाह व प्रदूषित हो रहे हैं. इससे प्रदेश में ग्लोबल वार्मिग का खतरा बढ़ रहा है. सरकार खनन रोकने अथवा नियंत्रित करने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन करे जिसकी अध्यक्षता सचिव पर्यावरण या उसके द्वारा नियुक्त अपर सचिव स्तर का अधिकारी द्वारा की जाएगी.
उच्च स्तरीय समिति
इस समिति के सदस्य एफआरआई देहरादून के महानिदेशक, निदेशक वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून, जीएसआइ के महानिदेशक सदस्य होंगे. इसके अतिरिक्त समिति दो विशेषज्ञों को भी शामिल कर सकती है. समिति में प्रमुख वन संरक्षक राजेंद्र कुमार महाजन, आयुक्त कुमाऊं डी सैंथिल पांडियन नोडल अफसर होंगे. उच्च न्यायालय ने कहा कि उक्त दोनों अफसरों का तबादला अदालत की अनुमति के बिना नही किया जा सकेगा. खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिया कि समिति के नाम से खाता खोला जाए, जिसमें 50 लाख की धनराशि जमा की जाए. इस खाते का संचालन मंडलायुक्त कुमाऊं द्वारा किया जाएगा. इस धनराशि को समिति के सदस्यों को मानदेय व अन्य खर्चो में व्यय किया जा सकता है.
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