अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने 10 दिसंबर 2013 को ईरान में राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ मित्रता के एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किए. यह क्षेत्रीय सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण मुद्दे को कवर करेगा क्योंकि 2014 से अमेरिकी सेनाएँ अफगानिस्तान से वापस जाने वाली हैं.
समझौता दीर्घकालिक राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग के लिए होगा. करजई ने अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते के लिए अमेरिका के दबाव का प्रतिरोध करने में रूहानी की मदद मांगी. अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं की और अधिक उपस्थिति का विरोध करते हुए ईरान पहले ही इस समझौते का विरोध कर चुका है.
द्विपक्षीय सुरक्षा अधिनियम के संबंध में
यह 2014 के बाद अधिकांश अमेरिकी सेनाओं के वापस लौटने पर अफगानिस्तान में मौजूद रहने के लिए चिह्नित अमेरिकी टुकड़ियों पर लागू होने वाली कानूनी व्यवस्था को अमल में लाएगा.
लगभग 8,000 से 12,000 अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान में बने रहने की अनुमति देने वाले इस सुरक्षा समझौते ने अफगानिस्तान के भीतर और बाहर एक उत्तेजक बहस को जन्म दिया है.
विश्लेषक इस तथ्य की और संकेत करते हैं कि अमेरिकी सेना की मौजूदगी से अफगानिस्तान की ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों (जैसे भारत, चीन और ईरान) की भी सुरक्षा और स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी. इससे अफगानिस्तान में आतंकवाद भी असीमित रूप से बढ़ सकता है.
उत्तरी अटलांटिक सहयोग संगठन (नाटो) के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (आईएसएएफ) अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण प्रदान करने के अतिरिक्त अफगानिस्तान में सुरक्षा-गतिविधियाँ चलाते रहे हैं. उन्होंने द्विपक्षीय सुरक्षा अधिनियम के संबंध में किसी समझौते के अभाव में 2014 के बाद अफगानिस्तान में रुके रहने के प्रति अनिच्छा दर्शाई है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation