अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने अक्टूबर 2015 के पहले सप्ताह में गैर-लघु सेल वाले फेफड़े के कैंसर के इलाज हेतु एक दवा, कीत्रुडा, की "सफलता" को मंजूरी प्रदान की.
फेफड़ों के कैंसर के इलाज के लिए प्रतिरक्षा चिकित्सा का उपयोग करते हुए प्रकाशित सबसे बड़े अध्ययन में बताया गया कि दवा कीत्रुडा (पेम्ब्रोलिजुमैब) को गैर-लघु सेल वाले फेफड़े के कैंसर वाले लगभग 500 मरीजों पर सफल प्रयोग किया गया.
अधिकतर मरीजों पर दवा के सकारात्मक परिणाम आने पर, अक्टूबर 2015 में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने इस दवा को फेफड़े के इलाज के लिए नई सफलता करार दिया था.
लॉस एंजलिस में जोनसन कोम्प्रेहेंसिव कैंसर सेंटर के शोधकर्ता एवं अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक, डॉ एडवर्ड गैरोन के अनुसार, “इस दवा के शोध से यह पता चला है कि वर्तमान में फेफड़ों के कैंसर के इलाज के लिए यह एक कारगर दवा होगी. दवा के ट्रायल में मरीजों के ठीक होने की गति को अब तक दी जाने वाली दवाओं से बेहतर देखा गया.”
प्रयोग में पाया गया कि पारंपरिक रूप से फेफड़ों के कैंसर के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की तुलना में कीत्रुडा के बाद प्रतिक्रिया और प्रतिक्रिया की अवधि काफी तेज़ है. तीन वर्ष के चिकित्सीय परीक्षण के दौरान कुल मिलाकर 19 प्रतिशत मरीज ठीक हुए.
इसमें मौजूद उन्नत मेलेनोमा, एक एंटीबॉडी है जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा पीडी -1 प्रोटीन को लक्षित करता है. जब यह एक और प्रोटीन पीडी-एल1 के संपर्क में आता है तो पीडी -1 प्रतिरक्षक के रूप में कार्य करने लगता है. इससे प्रतिरक्षा प्रणाली के टी सेल को कमज़ोर किया जाता है जिससे कैंसर के लिए उत्तरदायी सेल्स में कमी आती है. जब पीडी -1 एवं पीडी-एल1 सेल्स आपस में संपर्क करना बंद कर देते हैं तो कैंसर का खतरा कम हो जाता है.
शोध में पाया गया कि जिन मरीजों पर शोध किया गया उनके ट्यूमर में पीडी-एल1 एक तिहाई पाया गया. सभी मरीजों में कुल सकारात्मक परिणाम 50 प्रतिशत पाया गया.
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