सुप्रीम कोर्ट ने 6 जुलाई 2015 को निर्णय देते हुए कहा कि अविवाहित मां पिता की स्वीकृति के बिना अपने बच्चे की अकेली अभिभावक बन सकती है.
इस फैसले में कोर्ट ने आगे कहा कि मां को उसके पिता की पहचान बताने की भी आवश्यकता नहीं है और न ही अभिभावक के लिए दी गई याचिका में उसे पार्टी बनाने की कोई आवश्यकता है.
जस्टिस विक्रमजीत सेन की पीठ ने कहा कि बच्चे के कल्याण के मद्देनजर पिता को नोटिस देने जैसे प्रक्रियात्मक कानूनों को रोका जा सकता है.
अभिभावक तथा बालक कानून और हिन्दू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट के तहत बच्चे का अभिभावक बनने के लिए उसके पिता की मंजूरी लेना आवश्यक है.
पीठ ने सरकारी सेवारत एक अविवाहित महिला द्वारा वर्ष 2011 में दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया. इसमें उसने अभिभावक बनने के लिए दी जाने वाली याचिका में पिता की पहचान का खुलासा करने के नियम को चुनौती दी थी.
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