भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर आर गांधी की अध्यक्षता में शहरी सहकारी बैंकों के लिए बनाई गयी उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) ने अपनी सिफारिशें जारी करते हुए कहा कि 20000 करोड़ से अधिक का व्यापार करने वाले शहरी सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंक का लाइसेंस देना चाहिए. इससे उन्हें आगे बढ़ने और वित्तीय समावेशन के लिए बढ़ावा मिलेगा.
आरबीआई ने 20 अगस्त 2015 को पैनल की सिफारिशें अपनी वेबसाइट पर डालीं तथा जनता से 15 सितंबर 2015 तक सुझाव देने के लिए कहा.
उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) द्वारा की गई महत्वपूर्ण सिफारिशें:
कारोबार का आकार तथा बहु-राज्य शहरी सहकारी बैंकों का संयुक्त स्टॉक बैंक में अंतरण: 20,000 करोड़ रूपए अथवा इससे अधिक कारोबार आकार एक शुरुआती सीमा होगी और सीमा से अधिक कारोबार वाले शहरी सहकारी बैंक से अपेक्षित होगा कि वह वाणिज्यिक बैंक में अंतरित किये जायें. यह आवश्यक नहीं है कि यह अंतरण कानूनन अनिवार्य हो लेकिन जो बैंक अंतरित नहीं होने का विकल्प चुनते हैं उनके कारोबार का प्रकार साधारण उत्पादों और सेवाओं की सीमा के अंदर रहेगा तथा इस प्रकार वृद्धि बहुत धीमी गति से होगी. अतः शाखाओं, परिचालन क्षेत्रों तथा कारोबार के संबंध में उनके विस्तार को सावधानीपूर्वक समायोजित किया जाना चाहिए.
शहरी सहकारी बैंकों का लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) में अंतरण: 20,000 करोड़ रूपए से कम कारोबार वाले लघु शहरी सहकारी बैंक जो लघु वित्त बैंकों में अंतरित होना चाहते हैं वे अंतरण के लिए रिज़र्व बैंक में आवेदन करें बशर्ते कि वे रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंड तथा चयन प्रक्रियाओं को पूरा करते हैं लेकिन लघु वित्त बैंकों के लिए लाइसेंसिंग विकल्प खुला रहे.
नए लाइसेंस जारी करना: वित्तीय रूप से सक्षम और सुप्रबंधित सहकारी क्रेडिट समितियों को लाइसेंस जारी किए जा सकते हैं जिनका कम से कम पांच वर्ष का अच्छा ट्रैक रिकार्ड हो और जो लाइसेंसिंग शर्तों के रूप में रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विनियामक शर्तों को पूरा करते हों. बैंक रहित क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए रिज़र्व बैंक वहां मौजूदा बैंकों के लिए शाखाएं खोलने के लिए एक उचित प्रोत्साहन सेट शुरू कर सकता है.
निदेशक बोर्ड (बीओडी) के अतिरिक्त मैनेजमेंट बोर्ड (बीओएम): मालेगाम समिति द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार नए शहरी सहकारी बैंकों के लाइसेंस के लिए और मौजूदा शहरी सहकारी बैंकों के विस्तार के लिए बीओएम का निर्माण एक अनिवार्य लाइसेंसिंग शर्त है.
एंट्री प्वाइंट मानदंड: नए एंट्री प्वाइंट मानदण्ड (EPNS) निम्न नुसार हो सकते हैं:
बहु राज्य शहरी सहकारी बैंक के रूप में काम करने के लिए – 100 करोड़ रुपये
दो जिलों से अधिक जिलों में और एक राज्य स्तरीय यूसीबी के रूप में काम करने के लिए – 50 करोड़ रुपये
जिला स्तर (2 जिलों तक) यूसीबी के रूप में काम करने के लिए – 25 करोड़ रुपये
बैंक रहित क्षेत्रों में और उत्तर-पूर्व की सहकारी ऋण समितियों के रूपांतरण के मामले में, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उचित छूट दी जा सकती है.
जमाकर्ता अथवा मतदाता: शहरी सहकारी बैंकों के बोर्ड में जमाकर्ताओं को मताधिकार होना चाहिए. इसके लिए, उपनियमों में उपयुक्त प्रावधान करके अधिकांश बोर्ड सीटें जमाकर्ताओं के लिए आरक्षित की जा सकती हैं.
पृष्ठभूमि
शहरी सहकारी बैंकों के लिए बनाई गयी उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर आर गांधी की अध्यक्षता में 30 जनवरी 2015 को किया गया था. नए शहरी सहकारी बैंकों की लाइसेंसिंग पर विशेषज्ञ समिति (मालेगाम समिति) की सिफारिश के अनुसार इसका गठन शहरी सहकारी बैंकों के वाणिज्यिक बैंकों में रूपांतरण संबंधी मुद्दों की जांच करने और अनुज्ञेय व्यापार लाइनों और उचित आकार की जांच और सिफारिश करने के लिए किया गया है.
इस समिति का गठन स्टैंडिंग एडवाइजरी कमिटी के सुझाव पर शहरी सहकारी बैंकों के लिए 20 अक्टूबर 2014 को किया गया था.
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