केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने के प्रस्ताव को 22 अगस्त 2013 को मंजूरी प्रदान की.
इस विधेयक के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम सिस्टम की जगह न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने का प्रावधान है. नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय किया गया.
न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने के प्रस्ताव वाले विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब संसद में पेश किया जाना है. संसद से पास होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय और देश के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति इस आयोग के जरिए की जानी है. भारत के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम कॉलेजियम सिस्टम को बनाए रखने के पक्षधर हैं
न्यायिक नियुक्ति आयोग
• न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले हेतु प्रस्तावित न्यायिक नियुक्ति आयोग में प्रधान न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश, कानून मंत्री और दो विशिष्ठ व्यक्ति शामिल होने का प्रवधान है.
• प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक अलग समिति द्वारा आयोग के दोनों विशिष्ठ सदस्यों का चयन किया जाने का प्रवधान है.
• लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश इस समिति के सदस्य होने हैं.
विदित हो कि आयोग के गठन हेतु संविधान संशोधन करना पड़ेगा लेकिन सरकार ओर न्यायपालिका के कुछ वर्गों को विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति है. अप्रैल 2013 में तैयार किए गए पहले प्रस्ताव में कहा गया था कि लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष को आयोग का सदस्य बनाया जाना चाहिए. लेकिन कैबिनेट से मंजूर प्रस्ताव में से इसे हटा दिया गया. हालांकि दोनों सदनों के विपक्ष के नेता उस समिति में शामिल होने हैं, जिनके द्वारा न्यायिक नियुक्ति आयोग हेतु दो प्रतिष्ठित नागरिकों का चुनाव किया जाना है. इस समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश और प्रधानमंत्री भी बतौर सदस्य शामिल होने का प्रवधान है.
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