केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जी.एम.सिद्धेश्वरा ने 22 जुलाई 2014 को बिहार के मुजफ्फरपुर, रक्सौल और गया जिले में तीन कम– लागत वाले हवाई अड्डों के स्थापना का प्रस्ताव पेश किया. गया में चालू कस्टम हवाई अड्डा होगा जबकि रक्सौल में गैर–परिचालन हवाई अड्डा होगा.
इन हवाईअड्डों का विकास राज्य सरकार द्वारा भूमि, अनिवार्य मंजूरी, पर्यावरण मंजूरी, यातायात अनुमानों और सहायता सेवाओं के प्रावधान की उपलब्धता पर निर्भर करेगा. सहायता सेवा में हवाईअड्डे के लिए सड़क, पानी की आपूर्ति, बिजली आपूर्ति, राज्य पुलिस एवं राज्य अग्निशमन कर्मचारियों की सेवाएं शामिल हैं.
इसके अलावा विमानन मंत्रालय ने देश भर में पचास स्थानों की पहचान के साथ कोल्हापुर हवाई अड्डे को छोटे हवाईअड्डे के तौर पर विकसित करने का फैसला किया है. मंत्रालय ने इसी श्रेणी में शोलापुर की प्रस्तावित ग्रीनफिल्ड हवाई अड्डे को मान्यता दी है.
देश में छोटे हवाईअड्डों के लिए पचास जगहों की पहचान के लिए उठाया जाने वाला कदम हवाईअड्डों के विकास की लंबित कार्रवाई के दिशा में अच्छा कदम माना जा रहा है. ये हवाईअड्डे पर्यटन सर्किट या पिछड़े इलाकों जहां कनेक्टिविटी बढ़ाने की जरूरत है, वहां बनाए जाएंगे.
इससे पहले जुलाई 2014 के आखिरी सप्ताह में मंत्रालय ने छह नई विमान सेवाओं को भी मंजूरी दी है. ये हैं एयर वन एविएशन प्राइवेट लिमिटेड, जेक्सस एयर एंड प्रीमियर एयर. इसके अलावा, टूर्बो मेघा, एयर कार्निवल और जैव एयरवेज क्षेत्रीय एयरलाइनों में संचालन का काम करना चाहते हैं.
टिप्पणी
विमानन मंत्रालय का ये कदम क्षेत्रीय एयरलाइन नीति के पुनरुद्धार के रुप में देखा जा सकता है लेकिन लक्ष्य को हासिल करने के लिहाज से यह कम है. ऐसा इसलिए क्योंकि इन हावईअड्डों के लिए अब तक डीजीसीए से मान्यताप्राप्त कोई खाका मौजूद नहीं है और इन छोटे हवाई अड्डों को कहीं भी बनाने में कम से कम 70– 80 करोड़ रुपये लगेंगे, और ऐसे 50 हवाई अड्डों का निर्माण करना आसान नहीं होगा.
इसके अलावा अनगिनत मुद्दों और संबंधित राज्य सरकारों से प्रोत्साहन के अभाव में क्षेत्रीय एयरलाइन नीति जिस रुप में सोचा गया है उस रूप में आकार नहीं ले पाएगा.
इसके अलावा, बिखरे छोरों को बांधने और इन छोटे हवाइअड्डों और एयरलाइंस व्यवहार्य हैं या नहीं यह सुनिश्चित करने में मंत्रालय ने लगता है कि अनुचित जल्दबादी दिखाई है. हाल के सप्ताह में सरकार ने हवाई अड्डों के बुनियादी ढांचे, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाने और मौजूदा एयरलाइनों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए काफी बोलियां लगाई हैं. टियर– II और टियर III शहरों में सैकडों नो–फ्रिल्स हवाई अड्डों को बनाने और क्षेत्रीय एयरलाइनों की शुरुआत के लिए प्रोत्साहन और जेट ईंधन के कर में कमी की बात कही गई है. हालांकि, जब तक नीति निर्माण और बुनियादी ढांचे के निर्माण का काम नहीं हो जाता, इन योजनाओं के निकट भविष्य में पूरे होने की संभावना नहीं दिखती.
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