केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 अप्रैल 2015 को संसद में प्रतिपूरक वनीकरण कोष (सीएएफ ) विधेयक, 2015 की शुरुआत के लिए अपनी मंजूरी प्रदान की. कानून का उद्देश्य केंद्र और प्रत्येक राज्य केंद्र शासित प्रदेशों के गैर-वन क्षेत्र के भूमि परिवर्तन के एवज में जरूरी धनराशि के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए संस्थात्मक तकनीक प्रदान करना है.
विधेयक के मुख्य बिंदु
• संघ राज्य क्षेत्र प्रशासकों और राज्यों से प्राप्त राशि से राष्ट्रीय वनीकरण प्रतिपूरक कोष और राज्य वनीकरण कोष की स्थापना करना, जिसके माध्यम से डायवर्ट की गई भूमि से हुए नुकसान की भरपाई हो.
• राष्ट्रीय सीएएफ के खाते में जमा होने वाली धनराशि के उपयोग और प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय वनीकरण प्रतिपूरक कोष और योजना प्राधिकरण (सीएएमपीए) की स्थापना.
• प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य सीएएफ में जमा राशि के उपयोग और प्रबंधन के लिए राज्य सीएएमपीए की स्थापना.
• राष्ट्रीय सीएएफ और राज्य सीएएफ के तहत गतिविधियों के लिए जारी होने वाली धनराशि की निगरानी और मूल्यांकन के लिए राष्ट्रीय सीएएमपीए के सहयोग के लिए एक निगरानी समूह की स्थापना करना.
विधेयक का महत्व
• प्रस्तावित कानून राज्य विधानसभाओं और संसद दोनों में सीएएफ को विस्तृत पटल पर लेकर आएगा और उन्हें कभी लैप्स नहीं होने वाले ब्याज युक्त कोष के हस्तांतरण द्वारा जनता की दृष्टि में लेकर आएगा, यह व्यवस्था भारत के संघीय और प्रत्येक राज्य में जनता के खातों के तहत बनाई जाएगी.
• यह प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंध और योजना प्राधिकरण (सीएएमपीए) के खाते में संचित धनराशि के खर्च होने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा, जो वर्तमान में 38000 करोड़ रुपये के क्रम में है.
• इसके अलावा, यह खर्च नहीं की गई संचित धनराशि के ताजा प्रतिपूरक ब्याज उपार्जन को भी सुनिश्चित करेगा, जो कि एक कुशल और पारदर्शी स्थिति में प्रतिवर्ष लगभग 6000 करोड़ रुपये है .
• वन भूमि के भूमि उपयोग में बदलाव के प्रभावों को कम करने के लिए राशि का उपयोग सही समय पर कार्यान्वयन करने पर खर्च किया जायेगा, जिसके लिए यह धनराशि जारी की गई हो.
• इस राशि का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में खासतौर पर पिछड़े जनजातीय क्षेत्रों में उत्पादनशील संपत्तियों के सृजन और वृहद रोजगार अवसरों को निर्मित करने में किया जाएगा.
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