प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 26 अगस्त 2015 को मध्यस्थता और समझौता विधेयक, 2015 को मंजूरी दे दी. ये संशोधन विधि आयोग की 246वीं रिपोर्ट की अनुशंसाओं और हितधारकों से प्राप्त सुझावों पर आधारित हैं.
केंद्र सरकार ने संसद में मध्यस्थता और समझौता विधेयक, 2015 लाकर मध्यस्थता और समझौता अधिनियम, 1996 को संशोधित करने का फैसला किया है. ये संशोधन भारत को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक पंचाट केंद्र बनाने में मदद करेंगे.
संशोधन की विशेषताएं
मध्यस्थों की तटस्थता सुनिश्चित करने के लिए, धारा 12 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है, जब एक व्यक्ति संभावित मध्यस्थ से संपर्क स्थापित करे, तो उसे किसी भी मौजूद संबंध या किसी प्रकार के लाभ की जानकारी जिसकी वजह से न्यायोचित संदेह पैदा होने की संभावना हो, की लिखित में जानकारी देनी होगी. इसके अलावा अगर व्यक्ति का विशेष संबंध है, तो वह मध्यस्थ के तौर पर नियुक्त किए जाने हेतु अयोग्य होगा.
एक नए प्रावधान को शामिल किया गया है जिसके अनुसार मध्यस्थ न्यायाधिकरण 12 माह के भीतर पंचाट बनाएगा. पत्र इस अवधि को छह माह के लिए बढ़ा सकते हैं. इसके बाद इस अवधि को सिर्फ अदालत द्वारा बढ़ाया जा सकता है, वह भी पर्याप्त वजहों के साथ. अगर अदालत पाती है कि सुनवाई में देरी मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आरोप्य कारणों से हो रही है, तो अवधि में विस्तार के दौरान अदालत मध्यस्थों की फीस में कटौती भी कर सकती है जो देरी के हर महीने के लिए पांच फीसदी से अधिक नहीं हो सकती. अगर पंचाट छह माह के भीतर बना लिया जाता है, तो पक्षों की सहमति से मध्यस्थ को अतिरिक्त फीस भी दी जा सकती है.
मध्यस्थता के संचालन के लिए फास्ट ट्रैक प्रक्रिया का प्रावधान शामिल करने का भी प्रस्ताव है. विवाद के पक्ष वाले फास्ट ट्रैक प्रक्रिया के माध्यम से विवाद को निपटाने पर सहमत हो सकते हैं. ऐसे मामलों में छह माह की अवधि में फैसला किया जाएगा.
पंचाट के फैसले को चुनौती देने के आधार से संबंधित धारा 34 में संशोधऩ, "भारत की सार्वजनिक नीति" शब्द को सीमित (फैसले को चुनौति देने के आधार के तौर पर ) करने के लिए, सिर्फ वैसे मामलों में जहां धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार की वजह से फैसला प्रभावित किया गया हो या यह भारतीय कानून के मूल नीतियों का उल्लंघन हो या यह सबसे बुनियादी नैतिकता या न्याय के विचार का विरोधी हो, तो ऐसे फैसले को भारत की सार्वजनिक नीति के खिलाफ समझा जाएगा.
फैसले को चुनौति देने वाले आवेदन का निपटारा अदालत में एक वर्ष के भीतर हो जाना चाहिए, के लिए एक नया प्रावधान.
धारा 36 में संशोधन का आशय है कि फैसले को चुनौती देने वाला आवेदन दाखिल करने का मतलब यह नहीं है कि फैसला का निष्पादन स्वतः ही रुक जाएगा. फैसला पर रोक तभी लगेगा जब अदालत किसी भी पक्ष द्वारा दाखिल किए गए आवेदन पर कोई विशेष आदेश जारी करे.
धारा 11 में एक नई उप– धारा जोड़ी गई है जिसका अर्थ है एक मध्यस्थ की नियुक्ति का आवेदन उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यथासंभव शीघ्रता से किया जाएगा और मामले को 60 दिनों के भीतर निपटाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
लागत व्यवस्था के लिए व्यापक प्रावधानों हेतु नई धारा 31ए शामिल किया जा रहा है. यह मध्यस्थों के साथ– साथ अदालत में संबंधित मुकदमेबाजी दोनों ही पर लागू होता है. यह तुच्छ और गुणवत्ताहीन मुकदमेबाजी/ मध्यस्थता से बचाने के लिए होगा.
मध्यस्थता न्यायाधिकरण को सशक्त बनाने के लिए धारा 17 में संशोधन किया जाएगा ताकि धारा 9 के तहत अदालत द्वारा दिए जाने वाले अंतरिम उपाय हेतु सभी प्रकार के अनुदान दिए जा सकें और ऐसे आदेशों को पालन अदालत द्वारा जारी आदेश के पालन की तरह ही किया जाएगा.
मध्यस्था प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इन संशोधनों के अलावा धारा 2(1)(e), 2(1)(f)(iii), 7(4)(b), 8(1) और (2), 9, 11, 14(1), 23, 24, 25, 28(3), 31(7)(b), 34(2A), 37, 48, 56 और धारा 57 में भी सुधार का प्रस्ताव है.
पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार व्यावसायिक विवादों के निपटारे के लिए मध्यस्थता को अधिक यूजर–फ्रेंडली और किफायती बनाकर पसंदीदा मॉडल बनाने हेतु प्रस्तावों पर विचार कर रही है. इससे मामलों को तेजी से निपटाने में मदद मिलेगी.
भारतीय विधि आयोग ने अपने 246वीं रिपोर्ट में मध्यस्थता और समझौता अधिनियम, 1996 में कई प्रकार के संशोधनों की अनुशंसा की है. विधि आयोग ने " मध्यस्थता और समझौता अधिनियम, 1996 पर 'सार्वजनिक नीति'– विकास रिपोर्ट 246 के बाद" पर रिपोर्ट संख्या 246 पर एक अनुपूरक भी प्रस्तुत किया है जिसमें विधि आयोग ने इस बात को ध्यान में रखा है कि सुप्रीम कोर्ट के बाद के फैसलों में अधिनियम की धारा 34(2)(b) में संशोधन के पुनर्निर्माण की सिफारिश की गई है.
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