जापान ने 29 जनवरी 2016 को यह घोषणा की है कि वह फरवरी 2016 से ‘नेगेटिव इंटरेस्ट रेट पालिसी’ को अपनाएगा.
नेगेटिव इंटरेस्ट रेट क्या है ?
नेगेटिव इंटरेस्ट रेट को यदि सरल भाषा में समझा जाए तो यह एक ऐसी स्थिति है जिसमे एक बैंक को सेविंग्स के लिए केन्द्रीय बैंक को ब्याज देना पड़ता है. अर्थात यदि किसी बैंक के पास ज़्यादा सेविंग्स होती है तो उसे केन्द्रीय बैंक को ज़्यादा ब्याज देना होगा.
प्रथमदृष्टया यह विधि नकारात्मक और अर्थव्यवस्था को हतोत्साहित करने वाली लगती है. परन्तु यहाँ से सकारात्मक है.
आमतौर पार यदि हम बैंक में धन जमा करते हैं तो बैंक उस जमा पूँजी पर खता धारक को ब्याज देता है. पर नेगेटिव इंटरेस्ट रेट पालिसी के तहत खता धारक को जमा पूँजी पर उल्टा ब्याज बैंक को देना पड़ेगा.
इस स्थिति में खता धारक बैंक में धन जमा करने के बजाए धन निकल कर निवेश या खर्च करेंगा.
जापान ने ये कदम क्यों उठाया ?
• जापना में निगेटिव इन्फ्लेशन है.
• इन्फ्लेशन निगेटिव होने का अर्थ है वस्तु सस्ती होगी.
• इस स्थिति में ग्राहक वस्तु इस आशा में नहीं खरीदता की वस्तु के दाम और घटेंगे.
• इसका प्रभाव यह होता है की वस्तु की माँग घाट जाती है.
• माँग घाटने पर निर्माण या विनिर्माण समाप्त हो जाता है.
• निर्माण या विनिर्माण की समाप्ति अंततः बेरोजगारी को जन्म देती है.
यूरोजोन में भी नकारात्मक ब्याज दर है, लेकिन यह पहली बार है जब तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने यह कदम उठाया हो.
नकारात्मक ब्याज दर नीति को पहले आपनाने वाले देशों के कुछ उदाहरण डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड आदि हैं.
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