सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज प्रताड़ना से हुई मौत के मामलों में अभियुक्त पर धारा 304 बी के साथ धारा 302 (हत्या) लगाने का निर्देश सभी निचली अदालतों को जारी किया. न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने यह निर्देश 22 नवंबर 2010 को दिया. सर्वोच्च न्यायालय के इस खंडपीठ के आदेश की प्रति सभी उच्च न्यायालयों को भेजा जाना है, जहां से यह आदेश निचली अदालतों को भेजा जाएगा.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ के अनुसार धारा 302 के लगाए जाने से जघन्यतम अपराध के लिए अभियुक्त को मौत की सजा भी सुनाई जा सकती है. इस आदेश से पहले तक दहेज हत्या के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत मुक़दमा दायर किया जाता था. धारा 304 बी में उम्र कैद (कम से कम 7 वर्ष) का प्रावधान है.
सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश रोहतक (हरियाणा) दहेज हत्या प्रकरण के अभियुक्त राजबीर उर्फ राजू के मामले में दिया.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने दलजीत कौर दहेज हत्या प्रकरण के अभियुक्त सुखदेव सिंह (12 नवंबर 2010) मामले में एवं बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (28 अक्टूबर 2010) में पहले भी दहेज हत्या को जघन्यतम अपराध की श्रेणी में रखने की सिफारिश कर चूका है. न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने भी गीता दहेज हत्या प्रकरण के अभियुक्त सत्य नारायण तिवारी (30 अक्टूबर 2010) को मामले की सुनवाई के बाद दहेज हत्या अभियुक्त के लिए धारा 302 लगाने की सिफारिश की थी.
ज्ञातव्य हो कि न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले के दौरान राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB: National Crime Record Bureau) के वर्ष 2008 के आंकड़ों का हवाला दिया था. आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2008 में कुल 8172 दहेज हत्याएं हुईं थी, जिनमें केवल 33.4 फीसदी मामले में सजा हो पाई. वर्ष 2008 में ही 81344 मामले महिलाओं पर उनके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा अत्याचार के दर्ज हुए, जिनमें सजा सिर्फ 22.4 फीसदी मामले में हुई थी.
दहेज हत्या के संबंध में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े और अक्टूबर-नवंबर 2010 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई सिफारिश और आदेश इस मामले की गंभीरता दर्शाते हैं. इससे यह साफ़ है कि जघन्यतम अपराध सिर्फ कभी-कभी होने वाले अपराध नहीं हैं. समाज में अगर कोई अपराध बार-बार हो रहा है, जिसमें बर्बरता साफ झलकती हो, तो उसे भी जघन्यतम अपराध माना जा सकता है.
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