राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने देशभर में प्लास्टिक, रबड़ या इस तरह के सामान को ‘खुले में अनियमित रूप से जलाने’ पर 13 दिसंबर 2013 को प्रतिबंध लगा दिया. एनजीटी ने यह निर्णय उत्तरी व उत्तरी पश्चिमी दिल्ली के कई गांवों में अवैध रूप से प्लास्टिक, रबर व इसी तरह के अन्य सामान जलाने के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए दिया. यह मामला पहले उच्च न्यायालय, दिल्ली में था, जिसे वर्ष 2011 में एनजीटी में स्थानांतरित कर दिया गया था.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया कि प्लास्टिक कचरा, कचरा डीलर और पुनर्चक्रण करने वालों एवं पीवीसी तथा प्लास्टिक अवशेष डीलर एसोसिएशन, प्रतिवादियों को प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण से रोका जाए.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया कि अव्यवस्थित ढंग से प्लास्टिक, रबर व इस तरह के अन्य सामान को जलाने से वातावरण को काफी नुकसान पहुंचता है. इसलिए देश में कहीं भी ऐसा करने पर प्रतिबंध लगाया जाता है. प्लास्टिक कचरे के पुनर्चक्रण के काम में लगे लोगों को प्लास्टिक कचरा नियम का पालन करने का भी निर्देश दिया गया है. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने स्थानीय निकायों को निर्देश दिया है कि वह इसका पालन सुनिश्चित करें.
एनजीटी ने देश भर के स्थानीय निकायों को कचरा प्रबंधन तथा उसका प्रयोग सड़क निर्माण या ऊर्जा उत्पादन में करने की संभावना तलाशने का भी निर्देश दिया, जिससे कि वातावरण को नुकसान न पहुंचे.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण
भारत सरकार द्वारा देश में पर्यावरण संबंधी मामलों पर सुनवाई के लिए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण प्राधिकरण की स्थापना वर्ष 2010 में की गई. सर्वोच्च न्यायलय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोकेश्वर सिंह पांटा को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के गठन के समय ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड के बाद भारत ऐसा तीसरा देश बन गया जहां राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण है.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण विधेयक संसद के दोनों सदनों में मई 2010 में पारित किया गया था तथा राष्ट्रपति द्वारा इसका अनुमोदन 2 जून, 2010 को किया गया था.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अधिकार
न्यायाधिकरण को व्यापक अधिकार दिए गये हैं. पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों को तीन वर्ष तक के कारावास व 10 करोड़ रुपए तक की सजा देने का अधिकार न्यायाधिकरण को है. कार्पोरेट सेक्टर के लिए यह राशि 25 करोड़ तक हो सकती है. इस न्यायाधिकरण के पहले पर्यावरण मामलों की देखभाल के लिए देश में नेशनल एन्वॉयरमेंट एपीलेट अथॉरिटी थी जिसे राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के गठन के बाद भंग कर दिया गया. नेशनल एन्वॉयरमेंट एपीलेट अथॉरिटी के अंतर्गत सभी विचाराधीन मामले हरित न्यायाधिकरण को हस्तांतरित कर दिए गये. इसके साथ ही विभिन्न उच्च न्यायालयों में पर्यावरण से संबंधित लंबित मामले भी न्यायाधिकरण को हस्तांतरित कर दिये गये. इस न्यायाधिकरण के फैसले की सर्वोच्च न्यायालय में पुनरीक्षा की जा सकती है.
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की संरचना
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को उच्च न्यायालय का दर्जा दिया गया है. इसका मुख्यालय दिल्ली में स्थापित किया गया. इसके साथ ही इसकी चार पीठें देश के चार विभिन्न शहरों में स्थापित की जानी हैं. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में 10 न्यायिक सदस्य होंगे जो विभिन्न उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. पर्यावरण संबंधी मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले 10 अन्य सदस्यों को भी न्यायाधिकरण में शामिल किया जाएगा.
विदित हो कि विभिन्न अदालती फैसलों और विधि आयोग की 186वीं रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का गठन किया गया. विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पर्यावरण संबंधी विवादों के निपटारे के लिए पृथक न्यायाधिकरण या अदालतें गठित करने की सिफारिश की थी.
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