उच्चतम न्यायालय ने दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया कि निगम पार्षद लोकसेवकों की श्रेणी में आते हैं. अतः निगम पार्षदों पर लोकसेवकों पर लागू होने वाले भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला 30 अक्टूबर 2013 को सुनाया.
राजस्थान के बांसवाड़ा में निगम पार्षद रहे मनीष त्रिवेदी की याचिका की सुनवाई कर रही उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सी के प्रसाद तथा जे एस खेहर की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की परिभाषा के दायरे को व्यापक बनाने का प्रावधान किया गया है एवं इसे लोकसेवा को साफ-सुथरा बनाने के लिए ही लाया गया था.
निर्णय सुनाते समय खंडपीठ ने लोकसेवकों की परिभाषा की व्याख्या की – निगम पार्षद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अनुच्छेद 2 (सी) के तहत लोकसेवकों की श्रेणी में आते हैं. इस अनुच्छेद का आठवें उपखंड के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो किसी ऐसे पद को धारण करता है जिसके माध्यम से लोक सेवा की जाती हो, लोकसेवक की श्रेणी में आता है.
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