बिहार विधानसभा ने बिहार लोकायुक्त विधेयक 2011 (Bihar Lokayukta Bill 201), 7 दिसंबर 2011 को ध्वनिमत से पारित कर दिया. इस अधिनियम का उद्देश्य राज्य में भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों की जांच के लिए लोकायुक्त संस्था का गठन करना है.
अधिनियम में लोकायुक्त के चयन के लिए दो समिति-चयन समित (Selection commitee) और खोजबीन समिति(Search Commitee) का प्रवाधान है. चयन समित में पांच सदस्य-विधान परिषद के सभापति, राज्य विधानसभा के अध्यक्ष, पटना उच्च न्यायालय द्वारा नामित दो न्यायाधीश और एक लोकायुक्त, होंगें. पांच सदस्यों की एक खोजबीन समिति भी होगी, जो लोकायुक्त पीठ के लिए उपयुक्त सदस्यों का एक पैनल तैयार करेगी. चयन समिति उसी पैनल में से तीन नाम चुनकर राज्यपाल को भेजेगी और उसी आधार पर राज्यपाल यहां लोकायुक्त पीठ को मंज़ूरी देंगे.
पांच सदस्यों वाली एक चयन समिति बिहार की तीन सदस्यीय लोकायुक्त संस्था के अध्यक्ष और दो सदस्यों के चयन की अनुशंसा करेंगी.
लोकायुक्त पीठ के तीन में से दो सदस्यों का न्यायिक सेवा का सदस्य होना अनिवार्य है. लोकायुक्त का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा. लोकायुक्त संस्था के अध्यक्ष और सदस्य को राज्य के राज्यपाल द्वारा की गई सिफारिश पर सर्वोच्च न्यायालय की सहमति से हटाया जा सकेगा.
प्रस्तावित क़ानून में न्यायाधीश चंद्रमोहन प्रसाद अपने कार्यकाल पूरा होने तक बिहार लोकायुक्त संस्था के प्रथम अध्यक्ष होंगे. बिहार लोकायुक्त संस्था के अध्यक्ष पद पर इनकी नियुक्ति सितंबर 2011 में हुई थी.
बिहार विधान मंडल के दोनों सदनों से पारित होने और राज्यपाल की मंज़ूरी मिलने के तीस दिनों के भीतर इसे राज्य सरकार अधिसूचित करेगी. उसके बाद ही यह विधेयक क़ानून का रूप ले सकेगा. बिहार के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, राज्य विधानसभा के अध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति, मंत्री, विधायक, सरकारी अधिकारी और कर्मचारी समेत निगम, बोर्ड और पंचायत कर्मियों को भी जांच के दायरे में लाने का प्रावधान इस अधिनियम में है.
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