विश्व खाद्य परियोजना (डब्ल्यूएफपी) द्वारा 10 दिसंबर 2013 को वर्ष 2013 के लिए 169 देशों के संबंध में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का मध्याह्न भोजन कार्यक्रम (मिड डे मील प्रोग्राम) 35 निम्नतर-मध्य आय वाले देशों में 12वें स्थान पर आता है. किंतु उसमें कहा गया है कि भारत का विद्यालय-भोजन कार्यक्रम विश्व में सबसे बड़ा है, जो 11.40 करोड़ से अधिक बच्चों को भोजन उपलब्ध कराता है. यह देश के स्कूल जाने वाले बच्चों की कुल संख्या का लगभग 79 प्रतिशत कवर करता है.
विश्वभर में विद्यालय-भोजन की स्थिति, 2013 (State of School Feeding Worldwide, 2013) नामक इस रिपोर्ट के निष्कर्ष विश्व भोजन कार्यक्रम (वर्ल्ड फूड प्रोग्राम) द्वारा 2012 में किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण पर आधारित हैं. रिपोर्ट में भारत की मध्याह्न भोजन योजना की मिश्रित कार्यान्वयन एप्रोच के एक अच्छे उदाहरण के रूप में प्रशंसा की गई है.
रिपोर्ट भारत की मध्याह्न भोजन योजना में दो अधिप्राप्ति-प्रक्रियाएँ (प्रोक्योरमेंट प्रोसेसेज) देखती है—एक खाद्यान्नों के लिए, जिन पर केंद्र द्वारा भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के माध्यम से सब्सिडी दी जाती है, और दूसरी ताजे फल या सब्जियों जैसी अन्य मदों के लिए, जो राज्य स्तर पर अधिप्राप्त की जाती हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, मध्याह्न भोजन योजना 2001-02 से 2007-08 के बीच सकल प्राथमिक नामांकन में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण थी. यह संबंध अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बारे में ज्यादा बताया गया है.
इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में कहा गया है कि विद्यालय-भोजन योजनाएँ नामांकनों में बढ़ोतरी की पर्याप्त शर्त नहीं हैं. उनके साथ पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकों, शिक्षकों और सीखने के माहौल की उपलब्धता जरूरी है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिक्षकों को भोजन पकाने (कुकिंग) में नहीं लगाया जाना चाहिए, क्योंकि इससे विद्यालयों में शिक्षण की प्रक्रिया बाधित होगी.
किंतु रिपोर्ट इस योजना के पोषणगत प्रभाव के बारे में कुछ नहीं कहती. इसके बावजूद यह कहती है कि योजना को संबंधित क्षेत्रों के बीच बेहतर समन्वय के साथ फाइन-ट्यून किया जाना आवश्यक है; सरकार को खाद्य-परिवहन और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए अधिक और तीव्रता से वितरित निधियाँ आबंटित करना जरूरी है.
एक युगांतरकारी सिफारिश करते हुए रिपोर्ट कहती है कि मध्याह्न भोजन योजना को स्थानीय कृषि-क्षेत्र के साथ जोड़ा जा सकता है. बच्चों को खिलाने के लिए भोजन स्थानीय स्तर पर खरीदा जा सकता है, जिससे कृषि-अर्थव्यवस्था को गारंटीशुदा स्थानीय बाजार मिलने से बढ़ावा भी मिलेगा. रिपोर्ट ब्राजील, स्कॉटलैंड और चिली का उदहारण देती है, जो अपने विद्यालय-भोजन कर्यक्रमों को निधियाँ प्रदान करने के लिए पहले से ऐसी स्थानीय खरीदें कर रहे हैं.
मध्याह्न भोजन योजना के संबंध में
1925 में मद्रास नगर निगम में वंचित वर्गों के लिए एक मध्याह्न भोजन योजना लागू की गई थी. 1980 के दशक के पूर्वार्ध तक तीन राज्यों (गुजरात, तमिलनाडु और केरल) तथा संघशासित क्षेत्र पुड्डुचेरी ने प्राथमिक स्तर (कक्षा 1-5) तक के बच्चों के लिए एक पका हुआ विद्यालय-भोजन कार्यक्रम अपना लिया था.
बच्चों का नामांकन, अवरोधन (रिटेंशन) और उपस्थिति बढ़ाने के साथ-साथ उनकी पोषणगत स्थिति सुधारने के लिए 15 अगस्त 1995 को देश के 2405 खंडों में केंद्र द्वारा प्रायोजित स्कीम के रूप में प्राथमिक शिक्षा की पोषणगत सहायता का राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपी-एनएसपीई) लागू किया गया. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय के बाद 2001 में इस योजना का विस्तार संपूर्ण भारत में कर दिया गया.
अक्तूबर 2007 में पहले 3479 में यह स्कीम ऊपरी प्राथमिक स्तर (कक्षा 6 से 8) तक विस्तारित कर दी गई. 1 अप्रैल 2008 से यह स्कीम देशभर के समस्त क्षेत्रों के सरकारी, स्थानीय निकाय और सरकारी सहायताप्राप्त प्राथमिक तथा ऊपरी प्राथमिक विद्यालयों और शिक्षा गारंटी योजना (ईजीएस)/वैकल्पिक और नवोन्मेषकारी शिक्षा (एआईई) केंद्रों को कवर कर रही है, जिनमें सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के अंतर्गत सहायताप्राप्त मदरसे और मकतब शामिल हैं.
2009 में ऊपरी प्राथमिक बच्चों के लिए खाद्य मानदंड संशोधित किए गए. दालों के लिए आबंटन अब 25 से बढ़ाकर 30 ग्राम और सब्जियों के लिए 65 से बढ़ाकर 75 ग्राम कर दिए गए हैं. तेल और वसा के लिए आबंटन 10 ग्राम से घटाकर 7.5 कर दिया गया है.
बजट 2013 में विद्यालय-भोजन कार्यक्रम के लिए 13215 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया है. यह प्रारंभिक शिक्षा के कुल बजट का 80% है. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के दौरान मध्याह्न भोजन योजना के लिए आबंटन उल्लेखनीय रूप से 55 % तक बढ़ गया है. 2007-08 में जहाँ यह 6678 करोड़ रुपये था, वहीं 2011-12 में बढ़कर 10380 रुपये हो गया.
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