भारत की एकमात्र गोरिल्ला पोलो की मैसूर चिड़ियाघर में 26 अप्रैल 2014 को मृत्यु हो गई. पोलो भारतीय चिड़ियाघर में एकमात्र गोरिल्ला था. इसकी मृत्यु श्वसन संक्रमण और उम्र से संबंधित बीमारियों के कारण हुई.
कुछ वर्ष पहले तक 43 वर्षीय नर पश्चिमी निम्नभूमि क्षेत्र वाला पोलो एशिया का एकमात्र गोरिल्ला था. इसको 12 अगस्त 1995 को आयरलैंड के डबलिन चिड़ियाघर द्वारा मैसूर चिड़ियाघर को उपहार में दिया गया था.
गुरिल्लों से सम्बंधित मुख्य तथ्य
गोरिल्ला सामान्यतया मध्य अफ्रीका में उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जंगलों में पाए जाते हैं. इनकों उप प्रजातियों के आधार पर संकटापन्न से गंभीर रूप से संकटग्रस्त की सूची में रखा जाता है. वर्तमान में विश्व में कई गोरिल्ला प्रजातिओं की आबादी में गिरावट आई है या ये पूरी तरह से पिछले कुछ दशकों में विलुप्त हो गये है. उच्चभूमि और पर्वतीय उप प्रजातियों की तुलना में निम्नभूमि गोरिल्ला की उपप्रजाति अधिक और बड़े पैमाने पर विस्तृत हैं. केवल पर्वतीय गोरिल्ला अपनी संख्या में वृद्धि दिखा रहे हैं लेकिन अब भी उनकी कुल संख्या काफी कम हैं.
निम्नभूमि एवं उच्चभूमि गोरिल्ला की दो उप उपप्रजाति हैं
पश्चिमी गोरिल्ला
• पश्चिमी निम्नभूमि गोरिल्ला (वैज्ञानिक नाम गोरिल्ला गोरिल्ला गोरिल्ला) गंभीर रूप से संकटग्रस्त है.
• क्रॉस रिवर गोरिल्ला: (वैज्ञानिक नाम गोरिल्ला गोरिल्ला दिएहली) यह भी गंभीर रूप से संकटग्रस्त है.
पूर्वी गोरिल्ला
• पहाड़ी गोरिल्ला (वैज्ञानिक नाम गोरिल्ला बेरिन्गेइ) गंभीर रूप से संकटग्रस्त है
• पूर्वी तराई या ग्रौअर गोरिल्ला (वैज्ञानिक नाम गोरिल्ला बेरिन्गेइ ग्रौएरी) लुप्तप्राय प्रजाति है.
ये चारों उप प्रजातिया पश्चिमी एवं पूर्वी गोरिल्ला या तो संकटापन्न हैं या गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं. इनको वन्यजीव व्यापार, निवास स्थान हानि, बुशमीट और संक्रामक रोगों के कारण नुकसान हो रहा हैं. इनके अतिरिक्त क्रॉस रिवर गोरिल्ला जो विश्व के दुर्लभतम सबसे बड़े वानर हैं अब केवल 250 से 300 की आबादी में बचे हैं.
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