भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने 11 जुलाई 2014 को खरगोश के ‘लैब एनिमल’ (प्रयोगशाला पशु) के रूप में रिसर्च एवं ब्रीडिंग पर रोक लगाने का आदेश जारी किया. आइसीएआर ने इसके पीछे कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया. आइसीएआर के इस रोक संबंधी आदेश से भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) में चल रही खरगोश से संबंधित कई रिसर्च बंद हो जाएंगी.
वर्तमान में खरगोश को ‘लैब एनिमल’ के रूप में प्रयोग करते हुए, भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) में खरगोश से ‘स्वाइन फीवर वैक्सीन’ बनाई जा रही है. रोक लगने के बाद उन पर प्रयोग या ब्रीडिंग रोक दी गई है. आइवीआरआइ के अलावा राजस्थान के टोंक जिला के ‘सेंट्रल सीप एंड ऊल रिसर्च सेंटर’ अविकानगर और हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी के ‘गरसा फार्म’ में भी खरगोश पर रिसर्च हो रहा है. इन संस्थानों में ऊन और मांस के लिए खरगोश पर रिसर्च किया जा रहा है.
‘लैब एनिमल’(प्रयोगशाला पशु)
वैज्ञानिक रिसर्च करके पशुओं या मनुष्यों के लिए जो दवाएं या वैक्सीन बनाते हैं, उन दवाओं का उपयोग मनुष्यों या पशुओं पर होने से पहले कुछ छोटे जीवों पर प्रयोग करके उसका असर देखा जाता है. लैब में जिन जीवों पर दवाओं का असर प्रयोग करके देखा जाता है, उसे ‘लैब एनिमल’ कहते हैं.
विदित हो कि ‘बटेर’ के बाद खरगोश के ‘लैब एनिमल’ के रूप में रिसर्च और ब्रीडिंग पर रोक लगाई गई है.
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