महाराष्ट्र सरकार ने मुसलमानों को दिया गया 5% आरक्षण 4 मार्च 2015 को रद्द कर दिया. फड़नवीस सरकार के 2 मार्च 2015 को जारी शासनादेश में कहा गया है कि मुस्लिम आरक्षण संबंधी अध्यादेश के कानून में रूपांतरित न होने की वजह से इस अध्यादेश की अवधि 2 दिसंबर 2014 को समाप्त हो गई है. अत: इस शासनादेश के माध्यम से 24 जुलाई 2014 के शासन के फैसले को रद्द किया जाता है.
पृथ्वीराज चह्वाण के नेतृत्व वाली कांग्रेस-एनसीपी की राज्य सरकार ने विधानसभा चुनाव 2015 से पहले मराठा समुदाय और बची हुई विभिन्न मुस्लिम जातियों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 5% आरक्षण देने का फैसला लागू किया था. आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर एक विशेष 'एसबीसी-ए' वर्ग बनाया गया.
विदित हो कि पूर्ववर्ती कांग्रेस-राकांपा सरकार ने मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के साथ मुस्लिमों के भी एक वर्ग को शिक्षा एवं नौकरियों में पांच प्रतिशत आरक्षण दिया था. इसे चुनौती देने वाली याचिका (क्र. 2053/2014) संजीत शुक्ला बनाम महाराष्ट्र सरकार मुंबई उच्च न्यायालय में दायर की गई. मुंबई उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए 14 नवंबर, 2014 को मराठा आरक्षण के साथ मुस्लिम आरक्षण को भी स्थगित कर दिया था. लेकिन बंबई उच्च न्यायालय ने मुस्लिमों को शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण देने पर रोक नहीं लगाई थी.
इस आरक्षण के रद्द होने के बाद मुस्लिम आरक्षण के लिए 29 मार्च 1997 को लागू की गई सूची के आधार पर ही आरक्षण लागू रहेगा.
विश्लेषण: चूंकि नौकरियों और शिक्षा दोनों में आरक्षण के लिए एक ही अध्यादेश जारी किया गया था, इसलिए अब नया शासनादेश लागू होने के बाद मुस्लिमों को शिक्षा में भी आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा.
इस नए 21 प्रतितशत आरक्षण से महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 74 प्रतिशत तक जा रहा है जो कि गैर-संवैधानिक है. महाराष्ट्र में 52 प्रतिशत आरक्षण पहले से चला आ रहा है.
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