सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2000 में दिल्ली के लाल किला पर हमले के दोषी मोहम्मद आरिफ की फांसी पर 28 अप्रैल 2014 को रोक लगा दी.
लाल किला हमला मामले में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2011 में मौत की सजा सुनाई गई थी. इस हमले में सेना के दो जवानों सहित तीन लोग मारे गए थे.
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली बेंच ने मोहम्मद आरिफ की फांसी के अमल पर रोक लगाते हुए इसकी याचिका पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया तथा इस मामले को संविधान पीठ को भेज दिया.
मोहम्मद आरिफ ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में इस आधार पर अपनी रिहाई का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया था कि वह पहले ही 13 साल से ज्यादा समय जेल में गुजार चुका है और इतनी लंबी अवधि के बाद उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए.
विदित हो कि मोहम्मद आरिफ को 25 दिसंबर 2000 को गिरफ्तार किया गया था. उसे निचली अदालत ने 24 अक्टूबर 2005 को दोषी करार दिया था और 31 अक्टूबर 2005 को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 सितंबर 2007 को उसकी मृत्युदंड पर मुहर लगाई, वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने 10 अगस्त 2011 को उसकी याचिका और 28 अगस्त 2011 को पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था.
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