तेलुगू लेखक डॉ रावुरी भारद्वाज का 48वें ज्ञानपीठ पुरस्कार (वर्ष 2012) के लिए चयन किया गया. इस पुरस्कार की घोषण 17 अप्रैल 2013 को ज्ञानपीठ चयन समिति ने की. उड़िया लेखक सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता वाली ज्ञानपीठ चयन समिति में प्रो दिनेशसिंह, नित्यानंद तिवारी, अमिय देब, शंकर शारदा, आलोक राय, आर शौरी, बलराज कोमल और सुरजीत पातर शामिल थे.
डॉ रावुरी भारद्वाज से संबंधित मुख्य तथ्य
• डॉ रावुरी भारद्वाज के तेलुगू में 37 लघुकथा संग्रह, 17 उपन्यास, तीन निबंध संग्रह और 8 नाटक प्रकाशित हुए हैं.
• उन्होंने बच्चों के लिए 6 लघु उपन्यास कादंबरी, पकुदुराल्लू, जीवन समारम, इनुपू तेरा वेनुका, कौमुदी और 5 लघुकथा संग्रह लिखें हैं.
• उनके अधिकांश रचनाकर्म का प्रमुख भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है.
• भारद्वाज को साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
• भारद्वाज ने द्वितीय विश्व युद्ध में तकनीशियन, कारखाने और पिंट्रिंग प्रेस के अलावा साप्ताहिक पत्रिका जामीन रायतु एवं दीनबंधु के संपादकीय विभाग में कार्य किया.
• भारद्वाज का जन्म वर्ष 1927 में तत्कालीन हैदराबाद स्टेट के मोगुलूरू गांव में हुआ था, जहां से वे आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में ताडीकोंडा गांव चले गए.
• आठवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाले डॉ रावुरी भारद्वाज को तीन विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की.
ज्ञानपीठ पुरस्कार
• ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है.
• ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है.
• यह पुरस्कार भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में से किसी भाषा के लेखक को प्रदान किया जाता है.
• वर्ष 2011 से पुरस्कार स्वरूप 11 लाख रुपए नकद, शॉल व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है. इसके पहले इस सम्मान के तहत 7 लाख रुपए नकद दिए जाते थे.
• वर्ष 2011 में भारतीय ज्ञानपीठ ने पुरस्कार राशि को 7 से बढ़ाकर 11 लाख रुपए किए जाने का निर्णय लिया था.
• वर्ष 1965 में 1 लाख रुपए की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए इस पुरस्कार को वर्ष 2005 में 7 लाख रुपए कर दिया गया.
• वर्ष 2005 के लिए चुने गए हिन्दी साहित्यकार कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थें जिन्हें 7 लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ.
• प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था. उस समय पुरस्कार की धनराशि 1 लाख रुपए थी.
• वर्ष 1982 तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिए दिया जाता था. लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिए दिया जाने लगा.
• वर्ष 2011 तक हिन्दी तथा कन्नड़ भाषा के लेखक सबसे अधिक 7 बार यह पुरस्कार पा चुके हैं.
• यह पुरस्कार बांग्ला को 5 बार, मलयालम को 4 बार, उड़िया, उर्दू और गुजराती को तीन-तीन बार, असमिया, मराठी, तेलुगू, पंजाबी और तमिल को दो-दो बार दिया जा चुका है.
• उड़िया भाषा की लेखिका एवं उपन्यासकार डॉ प्रतिभा राय को वर्ष 2011 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
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