विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने नई दिल्ली में 11 अक्टूबर 2014 को मैत्रेयी अंतरराष्ट्रीय विजिटिंग प्रोफेसरशिप का आरंभ किया. यह कार्यक्रम संयुक्त रूप से केंद्र सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा समर्थित हैं. इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष विश्व भर के विज्ञान और प्रौद्योगिकी के 12 प्रमुख अंतरराष्ट्रीय विद्वानों को भारत आमंत्रित किया जाएगा. वे तीन-तीन वार्ताएं स्कूल, कॉलेज और अनुसंधान संस्थान में प्रस्तुत करेंगे.
वार्ता के वीडियो संस्करण हिंदी व अंग्रेजी और संभवतः कई अन्य भारतीय भाषाओं में रिकार्ड किए जाएंगे. राज्यसभा टेलीविजन पर विजिटिंग प्रोफेसर के साथ लाइव वेब विचार-विमर्श सत्र आयोजित करने का भी प्रावधान है. इन को रिकॉर्ड कर विश्व भर के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध कराया जाएगा. प्रत्येक वर्ष विश्व के सर्वश्रेष्ठ प्रोफेसरों के साथ 36 वार्ताएं और 12 टीवी/रेडियो विचार-विमर्श से विश्व के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों के समृद्ध विचारों को सुलभ रूप से भारत के सामने लायेंगे.
वार्ता की रिकॉर्डिंग विश्व स्तर पर सुलभ रहेगी जो सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान प्रदान करेगी. विश्व भर के साथ ज्ञान साझा करने से युवाओं को ज्ञानवान बनाने और ज्ञान को परिवर्तन का एजेंट बनाने की मैत्रेयी की इच्छा पूर्ण हो सकेगी.
पृष्ठभूमि
मैत्रेयी नाम ऋषि याज्ञवल्क्य के महाकाव्य जिसमें उसकीं दो पत्नियां मैत्रेयी और कात्यायनी थी से लिया गया. याज्ञवल्क्य जब वानप्रस्थ लिए कामना करते हैं और इस प्रकार अपनी संपत्ति को अपनी दोनों पत्नियों के बीच विभाजित करते हैं. मैत्रेयी याज्ञवल्क्य से पूछती हैं की क्या वह इस धन के माध्यम से अमर हो सकती है, याज्ञवल्क्य कहता हैं की धन के माध्यम से वह कई धनवानों लोगों के बीच से एक बन सकती हैं लेकिन वह ज्ञान हैं जो किसी को भी अमर बना सकता हैं. इस प्रकार मैत्रेयी ने अपनी संपत्ति का हिस्सा लेने से मन कर दिया और याज्ञवल्क्य से ज्ञान प्राप्त करने का तरीका सिखाने और उसके द्वारा अमरत्व को प्राप्त करने के बारे में शिक्षा ग्रहण की.
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