वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन मैगाड्रॉट्स के खतरे को और बढ़ा सकता है. इस बात का खुलासा अमेरिकी मौसम विज्ञान सोसायटी के जरनल ऑफ क्लाइमेट के सितंबर 2014 के अंक में प्रकाशित – एक्सेसिंग द रिस्क ऑफ परसिस्टेंट ड्रॉट यूजिंग क्लाइमेट मॉडल सिमुलेशंस एंड पेलियोक्लाइमेट डाटा, शीर्षक वाली रिपोर्ट में किया गया था. इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. टोबी ऑल्ट हैं.
यह रिपोर्ट वैज्ञानिक तौर पर जलवायु परिवर्तन से मैगाड्रॉट्स के होने के खतरे को स्थापित करने वाली अपने तरह की पहली रिपोर्ट है.
मेगाड्रॉट्स
मेगाड्रॉट्स शब्द का प्रयोग आम तौर पर सूखे की लंबाई बताने के लिए किया जाता है न कि उसकी तीव्रता बताने के लिए. वैज्ञानिक शब्दावली में इस शब्द का इस्तेमाल दशकों लंबे सूखों या बहु–दशकीय सूखों का वर्णन करने के लिए किया जाता है.
ये ऐतिहासिक रूप से लंबे समय तक चलने वाली ला नीना स्थिति से जुड़े है जो ऊष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर में सामान्य पानी के तापमान को अपेक्षाकृत अधिक ठंडा बना देता है. इसकी वजह से वाष्पीकरण कम होता है और परिणामस्वरूप वर्षा में कमी हो जाती है.
मेगाड्रॉट्स के खतरे
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ये सूखे वर्तमान में कैलिफोर्निया में लंबे समय से चली आ रही पानी की समस्या से कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं. कैलिफोर्निया में, फसल की बर्बादी और नियमित रूप से जंगलों में लगने वाली आग के बीच पानी के नलकों की चोरी वहां के निवासियों का सहारा है.
ग्लोबल वार्मिंग तापमान में बढ़ोतरी और पहले से ही अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में बारिश कम होने से मेगाड्रॉट्स और अधिक देखने को मिलेगा.
जलवायु परिवर्तन के बिना इस सदी में दक्षिण– पश्चिम अमेरिका में मेगाड्राट का खतरा 5 से 15 फीसदी का है लेकिन जलवायु परिवर्तन होने पर इसके 20 फीसदी और 50 फीसदी तक हो जाने की संभावना है. इसकी वजह से देश का दक्षिणी हिस्से पर खतरा अधिक है.
मेगाड्राट्स का खतरा इतना बड़ा है कि यह विश्व की अर्थव्यवस्था और खाद्य आपूर्ति को तबाह कर सकता है, और बहुत बड़ा मानवीय संकट पैदा कर सकता है.
मेगाड्राट्स के प्रभाव
कई हजार वर्षों से मेगाड्रॉट्स विश्व के विभिन्न हिस्सों में समय– समय पर हुई है. कुछ मामलों में तो इसने सभ्यताओं का पतन तक कर डाला, जैसे प्राचीन प्यूब्लोअन अमेरिकी आदिवासी जो कि अमेरिका के दक्षिण– पश्चिम में रहते थे. इन्होंने 13वीं सदी में मेगाड्रॉट की वजह से अपने घरों से पलायन किया था. 14वीं सदी में कंबोडिया का खमेर साम्राज्य भी इसी वजह से अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हुआ था. भावी मेगाड्रॉट्स के नेतीजे और भयंकर होंगे क्योंकि वैश्विक आबादी बहुत है और पानी की आपूर्ति पर दबाव बहुत ज्यादा है.
सूखे के लिए जिम्मेदार ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग सूखे के हालात को और गंभीर एवं विनाशकारी बना देगा. अमेरिका का दक्षिण– पश्चिम, दक्षिणी यूरोप, अधिकांश अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और मध्य एवं दक्षिण अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों में दशकों तक चलने वाला सूखा पड़ सकता है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि लगातार बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग से भविष्य में बहु क्षेत्रीय गर्म मेगाड्रॉट्स आ सकते हैं. इसकी वजह से विश्व में बड़े पैमाने पर आर्थिक, खाद्य और मानवीय नुकसान हो सकते हैं.
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