भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 1 अगस्त 2014 को देश में आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली फास्ट ट्रैक करने के प्रस्ताव के लिए केंद्र सरकार के निर्देश दिए. सरकार को एक महीने के भीतर राज्यों के साथ परामर्श करके प्रस्ताव प्रस्तुत करने की जरूरत है. यह अवलोकन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट के बेंच में शामिल न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ नरीमन ने किया.
शीर्ष अदालत ने देश में आपराधिक न्याय प्रणाली की असंतोषजनक गति देखने के बाद केंद्र सरकार को प्रस्ताव के लिए कहा.
सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि देश में न्याय पाने की प्रक्रिया बेहद धीमी और चिंताजनक है. लोढा ने अफसोस जताते हुए कहा कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम उस गति से नहीं चल रहा है जैसा कि वे चाहते हैं. लेकिन वे अदालतें नहीं गठित कर सकते क्योंकि उनकी अपनी सीमाएं हैं. कोर्ट ने अटार्नी जनरल से कहा कि वे सरकार से कहें कि सरकार तत्काल राज्यों के विधि सचिव व मुख्य सचिवों की बैठक बुलाए और त्वरित न्याय प्रदान करने के लिए वैज्ञानिक तौर तरीके की नीति तैयार करे.
भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों की स्वदेश वापसी से संबंधित जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रस्ताव के लिए कहा.
भारत में लंबित मामले
सर्वोच्च न्यायालय में मामले - 60000
उच्च न्यायालयों में मामले - 44 लाख
निचली अदालतों में मामले - 2.68 लाख
सरकार का रवैया
दूसरी ओर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में गृह मंत्री राजनाथ सिंह और कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों को सालभर में सुलझाने के लिए ब्लूप्रिंट बनाने के निर्देश दिये. वर्तमान में भारत के नेताओं के खिलाफ 2000 मामले न्यायालयों में लंबित हैं.
कोर्ट का कहना था कि नेताओं को एक विशेष श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि सांसदों के मामलों का जल्द निपटारा इसलिए संभव नहीं है क्योंकि महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई सांसदों के मुकाबले ज्यादा तेजी से करने की जरूरत है.

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