भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजीव गांधी हत्याकांड का मामला संविधान पीठ को 25 अप्रैल 2014 को भेज दिया. राजीव गांधी हत्याकांड का मामला सात कैदियों को आजीवन कारावास से रिहा किए जाने से सम्बंधित है. सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि उन्हें रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के निर्णय पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश जारी रहेगा.
संविधान पीठ द्वारा इस मामले पर तीन महीने के भीतर सुनवाई की जाएगी. इस अवधि के दौरान संविधान पीठ मामले की संवैधानिकता की जाँच करेगी कि क्या किसी कैदी को, जिसका मृत्युदंड आजीवन कारावास में बदल दिया गया हो, सरकार रिहा कर सकती है?
भारत के मुख्य न्यायाधीश को संवैधानिक विधि के महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई के लिए एक संविधान पीठ गठित करने का अधिकार है, जिसमें पाँच या अधिक न्यायाधीश हो सकते हैं.
मामला संविधान पीठ को भेजने का निर्णय भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने किया. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय कैदियों को छोड़ने के तमिलनाडु सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया.
जयललिता के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार ने 19 फरवरी 2014 को राजीव हत्याकांड के सभी सातों कैदियों को रिहा करने का निर्णय किया था.
पृष्ठभूमि
सर्वोच्च न्यायालय ने 20 फरवरी 2014 को मुरुगन, संतन और अरिवु नामक तीन कैदियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी थी. इन तीन कैदियों के मृत्युदंड को सर्वोच्च न्यायालय ने 18 फरवरी 2014 को आजीवन कारावास में बदल दिया था.
न्यायालय ने पाया है कि राज्य सरकार की ओर से क्रिया विधिगत चूकें हुई हैं. बाद में न्यायालय ने नलिनी, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन नामक कैदियों की रिहाई पर भी रोक लगा दी थी.
वर्तमान में संतन, मुरुगन और अरिवु केंद्रीय कारगर, वेल्लोर में रखे गए हैं और वे 1991 से जेल में हैं. अन्य चार कैदी भी, जिन्होंने 21 मई 1991 को श्रीपेरूमनुदूर में गांधी की हत्या में भूमिका निभाई थी, आजीवन कारावास भुगत रहे हैं. हत्यारों को जनवरी 1998 में टाडा कोर्ट ने दोषी ठहराया था और उन्हें मृत्युदंड दिया गया था, जिसकी 11 मई 1999 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी पुष्टि कर दी थी.
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