Engineers Day 2025: भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस का आयोजन किया जाता है। आपको बता दें कि यह भारत के सबसे महान इंजीनियर और दूरदर्शी व्यक्ति थे, जो कि भारत के पहले इंजीनियर भी थे। उन्होंने न सिर्फ आधुनिक भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया, बल्कि इंजीनियरिंग के महत्त्व को भी भारत के सामने रखा। आज भारत में कई प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जहां से हर साल बड़ी संख्या में इंजीनियर ग्रेजुएट हो रहे हैं। इस लेख में हम भारत के पहले इंजीनियर और इंजीनियरिंग में उनके योगदान के बारे में जानेंगे।
भारत के पहले इंजीनियर कौन थे
सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वैया देश के पहले इंजीनियर माने जाते हैं। विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के कोलार में मुद्दनहल्ली गांव में हुआ था। उनका जन्म एक प्रसिद्ध विद्वान श्रीनिवास शास्त्री के यहां हुआ था।
कहां से पूरी की पढ़ाई
विश्वेश्वरैया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बंगलुरू के सेंट्रल कॉलेज से पूरी की। इसके बाद उन्होंने पुणे के कॉलेज ऑफ साइंस से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वहीं, 1883 में उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से परीक्ष पास की।
लोक निर्माण विभाग से शुरू किया करियर
विश्वेश्वरैया ने अपने करियर की शुरुआत बॉम्बे सरकार के लोक निर्माण विभाग (PWD) से की थी। उन्होंने इस विभाग में कुल 34 साल काम किया और कई महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में अपना योगदान दिया, जिनमें कुछ इस प्रकार हैंः
-सुकुंडा नदी परियोजना: विश्वेश्वरैया ने सुकुंडा नदी पर पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए एक प्रणाली विकसित की थी।
-गोदावरी नदी परियोजना: इस परियोजना के तहत उन्होंने एक ऐसी प्रणाली बनाई, जिससे पानी की बर्बादी रोका गया। इस प्रणाली को ब्लॉक प्रणाली के नाम से जाना जाता है।
-ऑटोमैटिक स्लुइस गेट्स (Automatic Sluice Gates): यह उनके सबसे प्रसिद्ध आविष्कारों में से एक है। इसेक तहत उन्होंने बांधों और जलाशय के पानी को नियंत्रित करने के लिए एक डिजाइन बनाया था। इससे बाढ़ के पानी को रोकने में मदद मिली थी। यह डिजाइन हमें ग्वालियर से लेकर खड़कवासला में देखने को मिल जाएगा।
हैदराबाद को बाढ़ से बचाया
साल 1908 में मूसी में बाढ़ आने की वजह से पानी हैदराबाद शहर तक पहुंच गया था। ऐसे में निजाम ने उन्हें एक ऐसी योजना तंत्र बनाने के लिए बुलाया, जिससे भविष्य में शहर को बाढ़ से बचाया जा सके। उन्होंने इसका डिजाइन तैयार किया और शहर को बाढ़ से बचाया।
मैसूर के दीवान के रूप में किया काम
साल 1912 में मैसूर के महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ ने उन्हें मैसूर राज्य का दीवान नियुक्त किया। उन्होंने छह वर्षों तक इस पद पद पर रहते हुए मैसूर सोप फैक्ट्री से लेकर इंजीनियरिंग कॉलेज के निर्माण में योगदान दिया। साल 1955 में उन्हें भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया।
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