कोलकाता में 22 कारीगरों की एक टीम द्वारा तीन महीने में बनाई गई 100 फुट की विशाल फाइबरग्लास बुद्ध की प्रतिमा, कला का एक आकर्षक रूप है. यह प्रतिमा शयन मुद्रा में बनाई गई है.
शयन मुद्रा में बुद्ध (Reclining Buddha) की प्रतिमा क्या दर्शाती है?
शयन मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा या छवि बुद्ध की अंतिम बीमारी के दौरान परिनिर्वाण में प्रवेश करने के बारे में दर्शाती है.
परिनिर्वाण मृत्यु के बाद महान मोक्ष का चरण जो केवल प्रबुद्ध आत्माओं द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है.
बुद्ध की मृत्यु तब हुई जब वे 80 वर्ष के थे, ध्यान की अवस्था में, पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर मेंं
बिहार के नालंदा में नव नालंदा महाविहार डीम्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति, बौद्ध विद्वान प्रो रवींद्र पंथ (Prof Ravindra Panth) के अनुसार, “बुद्ध का महापरिनिर्वाण कुशीनगर में हुई एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है; यह केवल एक मृत्यु नहीं है, यह महान मृत्यु है, जिसके बाद उसका कोई पुनर्जन्म नहीं होता है. इसलिए उनका जाना अंतिम है."
बिहार के महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थस्थलों का संक्षिप्त विवरण
प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व (Iconographic representation)
मुंबई के के.सी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर डॉ वृत्तंत मनवतकर (Dr Vruttant Manwatkar) के अनुसार शयन मुद्रा में बुद्ध को पहली बार गांधार कला में चित्रित किया गया था, जो 50 ईसा पूर्व और 75 ईस्वी के बीच की अवधि में शुरू हुई थी, और कुषाण काल के दौरान पहली से पांचवीं शताब्दी तक चरम पर थी.
शयन मुद्रा में बुद्ध की मूर्तियों और छवियों में उन्हें अपनी दाहिनी ओर लेटा हुआ दिखाया गया है, उनका सिर एक कुशन या उनकी दाहिनी कोहनी पर टिका हुआ है.
यह बौद्ध धर्म में एक लोकप्रिय प्रतीकात्मक चित्रण है, और यह दर्शाता है कि सभी प्राणियों में जागृत होने और मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होने की क्षमता है.
आइये अब जानते हैं भारत के बाहर शयन मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमाओं के बारे में
डॉ मनवतकर के अनुसार श्रीलंका और भारत में, बुद्ध को ज्यादातर बैठने की मुद्रा में दिखाया जाता है, जबकि थाईलैंड और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य हिस्सों में Reclining postures अधिक प्रचलित हैं.
यहीं आपको बता दें कि दुनिया में सबसे बड़ी Reclining बुद्ध 600 फुट का विंसिन ताव्या बुद्ध (Winsein Tawya Buddha) है जिसे 1992 में म्यांमार के मावलमाइन (Mawlamyine) में बनाया गया था.
वहीं 15वीं शताब्दी के अंत में, कंबोडिया के अंगकोर में बाफून (Baphuon in Cambodia’s Angkor) के हिंदू मंदिर स्थल पर या शयन मुद्रा में बुद्ध की 70-मीटर की प्रतिमा बनाई गई थी.
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत (Khyber Pakhtunkhwa province) में भामाला बुद्ध परिनिर्वाण (Bhamala Buddha Parinirvana), जो दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व का है, को दुनिया में अपनी तरह की सबसे पुरानी प्रतिमा मानी जाती है.
भारत में शयन मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा (Reclining Buddha) के बारे में जानते हैं
अजंता की यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की गुफा संख्या 26 में 24 फुट लंबी और नौ फुट ऊंची प्रतिमा है, जो कि शयन मुद्रा में बुद्ध की है, माना जाता है कि इसे 5वीं शताब्दी ईस्वी में Carve किया गया था.
कुशीनगर, जहां बुद्ध ने वास्तव में परिनिर्वाण प्राप्त किया था, परिनिर्वाण स्तूप के अंदर 6 मीटर लंबी लाल बलुआ पत्थर की अखंड बुद्ध की प्रतिमा है.
भारत में बुद्ध की अन्य प्रतिमाओं के बारे में
प्रोफेसर पंथ के अनुसार, भारत में बैठने की मुद्रा में बहुत सारे बुद्ध की प्रतिमाएं हैं, ज्यादातर उनके निधन के बजाय उनके ज्ञान से संबंधित हैं. जैसे की
- महाबोधि मंदिर में बुद्ध भूमि-स्पर्श मुद्रा में बैठे हुए दर्शाए गए हैं, जहां उनका हाथ जमीन की ओर इशारा कर रहा है. यह पृथ्वी को उनके ज्ञानोदय की साक्षी के रूप में दर्शाता है.
- सारनाथ में, जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था, पत्थर की प्रतिमा में एक हाथ का इशारा है जिसे धर्म-चक्र मुद्रा कहा जाता है, जो उपदेश का प्रतीक है. यह बोधि वृक्ष के चित्रण के साथ-साथ भारत में सबसे लोकप्रिय चित्रण भी है.
- वॉकिंग बुद्धा या तो आत्मज्ञान की ओर अपनी यात्रा शुरू कर रहे हैं या उपदेश देकर लौट रहे हैं. यह बुद्ध मुद्राओं में सबसे कम आम है, और ज्यादातर थाईलैंड में देखी जाती है.
विशेषज्ञों का कहना है कि बुद्ध को दुनिया भर में सौ से अधिक मुद्राओं में चित्रित किया गया है. जबकि बैठे हुए बुद्ध सबसे आम चित्रण को शिक्षण या ध्यान माना जाता है, वहीं स्टैंडिंग बुद्ध को निर्वाण तक पहुंचने के बाद सिखाने का प्रतीक माना जाता है.
Source: indianexpress
बुद्ध की विभिन्न मुद्राएं एवं हस्त संकेत और उनके अर्थ
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