भारत के शहर लगातार बदल रहे हैं। वे पहले से ज्यादा स्मार्ट, साफ और कुशल बन रहे हैं। इन्हीं में से एक शहर में एक बड़ा बदलाव देखा गया, जो बहुत सफल रहा है। यह बदलाव है शहर को रेड-लाइट-फ्री बनाना। ट्रैफिक लाइटें, जो गाड़ियों को नियंत्रित करने का एक मुख्य जरिया हैं, अक्सर देरी, ट्रैफिक जाम और बेवजह के ठहराव का कारण बनती हैं।
इसी वजह से राजस्थान के इस शहर ने इन समस्याओं को हल करने के लिए एक अलग और नया तरीका अपनाया। यह भारत का पहला ऐसा शहर है, जिसने ट्रैफिक लाइटों को पूरी तरह से हटा दिया है। यहां गाड़ियां सड़कों पर कहीं भी रुके बिना लगातार और आसानी से चलती रहती हैं।
भारत का पहला ट्रैफिक लाइट-फ्री शहर कौन-सा है?
राजस्थान में चंबल नदी के किनारे बसा कोटा, भारत का पहला रेड-लाइट-फ्री शहर बन गया है। इसकी घोषणा ने पूरे देश का ध्यान खींचा, जब स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि अब प्रमुख चौराहों पर एक भी ट्रैफिक लाइट चालू नहीं है। इस कदम ने कोटा को न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में अनोखा बना दिया है। बताया जाता है कि थिम्पू (भूटान) के बाद यह दुनिया का दूसरा ऐसा शहर है, जहां यह व्यवस्था लागू है।
इस पहल का मकसद ट्रैफिक की आवाजाही को आसान बनाना, चौराहों पर इंतजार का समय घटाना और ईंधन की बचत को बढ़ावा देना था। यह इसलिए संभव हुआ, क्योंकि अब गाड़ियां रेड लाइट पर बेकार खड़ी नहीं रहतीं।
कोटा ने यह दर्जा कैसे हासिल किया?
कोटा का रेड-लाइट-फ्री शहर में बदलना एक दिन में नहीं हुआ। यह रणनीतिक योजना, बड़े बुनियादी ढांचे के निर्माण और सड़क डिजाइन का नतीजा था।
शहरी सुधार ट्रस्ट (UIT) कोटा और राजस्थान सरकार ने इलाके में ट्रैफिक की बिना रुकावट आवाजाही के लिए सड़कों के सुधार का एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया। इसमें शामिल मुख्य कदम इस प्रकार थे:
-प्रमुख चौराहों पर लाइटों की जगह 30 से ज्यादा फ्लाईओवर, अंडरपास और गोल चक्कर बनाए गए।
-सड़कों को चौड़ा किया गया और उनका विस्तार किया गया, ताकि बिना किसी जाम के ज्यादा ट्रैफिक निकल सके।
-ड्राइवरों की मदद के लिए सड़कों पर लेन की साफ मार्किंग की गई और दिशा बताने वाले संकेत लगाए गए। इससे आवाजाही के दौरान कोई भ्रम पैदा नहीं होता है।
-गोल चक्कर (रोटरी) इस तरह से बनाए गए हैं कि वे बिना सिग्नल के ट्रैफिक को स्वाभाविक रूप से संभाल लेते हैं। इससे यातायात सुरक्षित और निरंतर बना रहता है।
इन कदमों से न केवल रेड लाइट की जरूरत खत्म हुई, बल्कि ईंधन बचाने, यात्रा में लगने वाले समय को कम करने और गाड़ियों के बेकार खड़े रहने से होने वाले वायु प्रदूषण को घटाने में भी बड़ी मदद मिली। इस पहल को एक जन जागरूकता अभियान से और बढ़ावा मिला। इस अभियान में ड्राइवरों से लेन अनुशासन का पालन करने और जिम्मेदारी से रास्ता देने का आग्रह किया गया।
निष्कर्ष यह है कि भारत के पहले रेड-लाइट-फ्री शहर के रूप में कोटा की सफलता एक बेहतरीन उदाहरण है। यह दिखाता है कि कैसे नई सोच, योजना और नागरिकों के सहयोग से शहरी क्षेत्रों में आवाजाही को बदला जा सकता है। इस शहर की सफलता यह साबित करती है कि सही बुनियादी ढांचे और स्मार्ट ट्रैफिक डिजाइन के साथ सामान्य सिग्नल सिस्टम की जगह एक सुरक्षित और कुशल व्यवस्था बनाई जा सकती है। कोटा द्वारा लागू किया गया मॉडल अब भारत के दूसरे शहरों के लिए एक मिसाल बन गया है। ये शहर भी एक टिकाऊ और आधुनिक ट्रैफिक सिस्टम लागू करना चाहते हैं, जो यात्रा को आसान, तेज और पर्यावरण के अनुकूल बनाएगा।
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