भारत में नदियों को लेकर विशेष महत्त्व है। क्योंकि, यहां नदियां सिर्फ पीने के पानी से लेकर सिंचाई या जल विद्युत परियोजनाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इन नदियों से लोगों की आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं। कुछ नदियों का जिक्र हमें प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी मिलता है।
ऋग्वैदिक काल लगभग 1500-1000 ईसा पूर्व तक था। इस काल में भी नदियों का महत्त्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक, और भौगोलिक महत्त्व था। इस काल में कई नदियों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, जिसे वेदों में सबसे पहले वेद के रूप में गिना जाता है। यही सबसे पुराना वेद है, जिसमें 1028 सूक्त हैं। इस लेख के माध्यम से हम ऋग्वेद कालीन महत्वूपूर्ण नदियों के बारे में जानेंगे।
ऋग्वेद में कुल कितनी हैं नदियां
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि कि आखिर ऋग्वेद में कुल कितनी नदियों का उल्लेख किया गया है ? आपको बता दें कि भारत के इस प्राचीन ग्रंथ में कुल 25 नदियों का जिक्र किया गया है।
कौन-सी है सबसे महत्त्वपूर्ण नदी
ऋग्वेद में सिंधु नदी को सबसे महत्त्वपूर्ण नदी बताया गया है। इस नदी का जिक्र बार-बार मिलता है, जो कि सप्त सैन्धव क्षेत्र की सीमा हुआ करती थी। वहीं, स्वात, गोमल, कुभा और क्रुमु इसकी सहायक नदियां हुआ करती थीं।
कौन-सी नदी थी सबसे पवित्र नदी
ऋग्वेद काल में सबसे पवित्र नदी का दर्जा सरस्वती नदी को माना गया है। इस नदी को नदियों की माता, बुद्धी को तीव्र करने वाली व संगीत प्रेरणादायी कहा गया है। हालांकि, वर्तमान समय में यह नदी राजस्थान में विलुप्त हो गई है।
ऋग्वेद की प्रमुख नदियां
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
क्रुभु | कुर्रम |
कुभा | काबुल |
वितस्ता | झेलम |
आस्किनी | चिनाब |
परुष्णी | रावी |
शतद्रि | सतलुज |
विपाशा | ब्यास |
सदानीरा | गंडक |
दृषद्वती | घग्घर |
गोमती | गोमल |
सुवास्तु | स्वात |
सिंधु | सिन्ध |
सरस्वती / दृशद्वर्ती | घग्घर / रक्षी / चित्तग |
सुषोमा | सोहन |
मरुद्वृधा | मरुवर्मन |
यदि आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए अधिक उपयोगी है। क्योंकि, परीक्षाओं में उत्तर वैदिक काल की नदियों को लेकर अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं। ऐसे में आप इन नदियों का अच्छा से अध्ययन करें। वहीं, सामान्य अध्ययन से जुड़ा अन्य लेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
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