इस लेख में हमने यह बताया है कि किस प्रकार टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया के माध्यम से महिला के अंडाशय से अण्डों को अलग कर शरीर के बाहर लैब में पुरुष के शुक्राणुओं के साथ निशेषित किया जाता है और इसके बाद तैयार भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है. इस IVF तकनीकी के माध्यम से निषेचन की प्रक्रिया उन महिलाओं पर अजमाई जाती है जिनके पतियों में शुक्राणुओं की मात्रा काफी कम होती है अर्थात 1-10 मिलियन/मिली. से कम.
इस प्रक्रिया में अण्डों से लेकर भ्रूण के प्रत्यारोपण के लिए कुछ चरण होते हैं जो कि इस प्रकार हैं:
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पहला चरण:
अण्डों का बनना:- प्राकृतिक रूप से औरत के अंडाशय में एक महीने के दौरान एक ही अंडा बनता है; लेकिन IVF तकनीकी की सहायता से महिला को ऐसी दवाइयां दी जाती हैं कि उसके अंडाशय में एक से अधिक अंडे बनने लगते हैं. ज्यादा अंडे इसलिए बनाये जाते हैं ताकि ज्यादा संख्या में स्वास्थ्य भ्रूण बनाये जा सकें.
दूसरा चरण:
अण्डों को बाहर निकालना:- महिला के अंडाशय से अण्डों को बाहर निकालने के लिए महिला को 15 मिनट के लिए बेहोश किया जाता है. इसके बाद अल्ट्रासाउंड इमेजिंग की मदद से योनि से होकर एक पतली सिरिंज (सुई) डाली जाती है और उसमे स्वास्थ्य अण्डों को बाहर निकाला जाता है.
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तीसरा चरण :
अन्डो का फर्टिलाइजेशन:- अब लेब में पुरुष के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग किये जाते हैं और इनका निषेचन महिला के अण्डों के साथ कराया जाता है. इसके लिए एक अंडे को पकड़कर उसके अन्दर एक शुक्राणु को इंजेक्ट किया जाता है. फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया पूरी होने के बाद विकसित भ्रूण को इन्क्युबेटर में रख दिया जाता है.
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चौथा चरण:
भ्रूण का विकास:- इन्क्युबेटर में रखे भ्रूण का विकास भ्रूण वैज्ञानिको की देखरेख में होता है. 2 से 3 दिन बाद यह निषेचित अंडा 6 से 8 सेल के भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है. इन विकसित भ्रूणों में से अच्छी क्वालिटी वाले 2 या 3 भ्रूणों का चयन प्रत्यारोपण के लिए किया जाता है.
पांचवा चरण:
भ्रूण प्रत्यारोपण:- भ्रूण वैज्ञानिक विकसित भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से 1 या अधिक स्वास्थ्य भ्रूणों का चयन कर भ्रूण ट्रान्सफर केथेटर में ले लेते हैं . डॉक्टर इस केथेटर को महिला के गर्भाशय में एक पतली नली के जरिये उन भ्रूणों को सावधानी से अल्ट्रासाउंड इमेजिंग की निगरानी में औरत के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर देते हैं. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि इस प्रक्रिया में कोई दर्द नही होता है और न ही किसी तरह का ऑपरेशन किया जाता है. अब प्रत्यरोपण के बाद भ्रूण का विकास ठीक वैसे ही होता है जैसे कि प्राकृतिक गर्भधारण में होता है.
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इस प्रकार जिस बच्चे के जन्म होता है उसे टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है.इसे टेस्ट ट्यूब बेबी इस लिए भी कहा जाता है क्योंकि इस तकनीकी में बच्चे के जन्म की प्रक्रिया/निषेचन परखनली (Test Tube) में शुरू होती हैं.
IVF तकनीकी में कितनी लागत आती है (IVF Treatment Cost)
इस तकनीकी के लिए लागत कई चीजों जैसे स्पर्म डोनर का खर्च, अस्पताल का खर्च,अन्य मेडिकल खर्च आदि को मिलाकर बनता है. विभिन्न शहरों में इसकी लागत अलग अलग होती है जैसे
a.चेन्नई: रु.1,45,000- 1,60,000 b.मुंबई: रु.2,00,000- 3,00,000
c.दिल्ली: रु.90,000- 1, 25,000 d. कोलकाता: रु.65,000-80,000
तो इस प्रकार आपने पढ़ कि IVF तकनीकी के माध्यम से किस प्रकार निसंतान लोगों को भी माता /पिता कहलाने का सौभाग्य मिल जाता है.
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