UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : मानव शरीर की संरचना, पार्ट-II

Dec 17, 2018, 12:41 IST

आज हम आपको UP Board कक्षा 10 विज्ञान के 17th अध्याय मानव शरीर की संरचना (structure of human body) के 2nd पार्ट का स्टडी नोट्स उपलब्ध करा रहें हैं| हम इस चैप्टर नोट्स में जिन टॉपिक्स को कवर कर रहें हैं उसे काफी सरल तरीके से समझाने की कोशिश की गई है और जहाँ भी उदाहरण की आवश्यकता है वहाँ उदहारण के साथ टॉपिक को परिभाषित किया गया है|

UP Board Class 10 Science Notes
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इस आर्टिकल में हम आपको UP Board कक्षा 10 वीं विज्ञान अध्याय 17; मानव शरीर की संरचना (structure of human body) के 2nd पार्ट का स्टडी नोट्स उपलब्ध करा रहें हैं| यहाँ शोर्ट नोट्स उपलब्ध करने का एक मात्र उद्देश्य छात्रों को पूर्ण रूप से चैप्टर के सभी बिन्दुओं को आसान तरीके से समझाना है| इसलिए इस नोट्स में सभी टॉपिक को बड़े ही सरल तरीके से समझाया गया है और साथ ही साथ सभी टॉपिक के मुख्य बिन्दुओं पर समान रूप से प्रकाश डाला गया है| यहां दिए गए नोट्स यूपी बोर्ड की कक्षा 10 वीं विज्ञान बोर्ड की परीक्षा 2018 और आंतरिक परीक्षा में उपस्थित होने वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित होंगे। इस लेख में हम जिन टॉपिक को कवर कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं:

1. मनुष्य की आहार नाल

2. मुख एवं मुख गुहिका

3. ग्रसनी

4. ग्रासनली

5. आमाशय

6. छोटी आँत्र

7. बडी आँत्र

8. यकृत के कार्यं

9. पित्त रस का स्त्रावण

10. ग्लाइकोजन के रूप में ग्लूकोस का संचय

11. ग्लुकोजिनोलाइसिस

12. ग्लाइकोनियोजेनेसिस

13. वसा एवं विटामिन्स का संश्लेषण एवं संचय

14. अकार्बनिक पदार्थों का संचय

15. श्वसन

16. मनुष्य का श्वसन तन्त्र

17. फेफडों की संरचना

मनुष्य की आहार नाल :

 structure of human body

1. मुख एवं मुख गुहिका (Mouth and Buccal cavity) : मुख गुहा में जीभ(toung) स्थित होती है| यह भोजन में लार मिलाने तथा भोजन को निगलने में सहायता करती है| मनुष्य के दोनों जबड़ो पर गर्तदंती(thecodont),  विश्मदान्ति (hetrodont) तथा द्विबारदंती (diphyodont) प्रकार के दाँत लगे होते है। मुखगुहा में स्वार ग्रन्थियाँ (salivary glands) नलिकाओं के खुलती है। इनसे लार स्त्रावित होती है| लार में श्लेष्म तथा टायलिन एन्जाइम पाया जाता है|

2. ग्रसनी (Pharynx) - यह मुखग्रासन गुहिका का पश्च छोटा भाग है। ग्रसनी घांटी द्वार या ग्लाटिस (glottis) द्वारा श्वासनली और गलेट या ग्रसिका द्वारा ग्रासनाल में खुलती है। घांटी द्वार पर उपास्थि का बना एक घांटी ढापन या एपीग्लाटिस (epiglottis) होता है। भोजन निगलते एपीग्लाटिस ग्लाटिक को ढक लेता है, जिससे भोजन श्वासनली में प्रवेश नहीं करता।

3. ग्रासनली (Oesophagus) - यह पाली तथा लम्बी नलिका है जो डायाफ्राम को भेदकर उदर गुहा में प्रवेश करती है। ग्रासनाल मे अनुलम्ब पेशीय वलय पाए जाते है।

4. आमाशय (Stomach) - यह आहार नाल का सबसे चौडा भाग है। आमाशय तथा ग्रासनली। के बीच जठरागमी अवरोधनी या कार्डियक अवरोधनी (cardiac sphincter) उपस्थित होती है। आमाशय को तीन भागो में बाँटा जाता है - सबसे उपरी भाग के जठरागमी या कार्डिंयक भाग (cardiac region), मध्य का मध्य भाग या फ़न्डिक भाग (fundic region) तथा अन्त में जठरनिर्गमी या पाइलोरिक भाग (pyloric region)|

5. छोटी आँत्र (Small  intestine) - यह आहार नाल का संकरा तथा लम्बा भाग होता है मनुष्य में छोटी आँत्र लगभग 6.5 मीटर लम्बी होती है। जिस स्थान पर आमाशय छोटी आँत्र में रवुलता है  वहाँ जठरनिर्गमी अवरोधनी या पायलोरिक अवरोधनी (pyloric sphincter) पाई जाती है। आँत्र को इसकी आन्तरिक रचना के आधार पर तीन भागो में बाँटा जाता है - सबसे पहला भाग है,  आमाशय के साथ U का आकार बनाता है, उसे ग्रहणी या डूयोडिनम (duodenum) कहते है, मध्य का  भाग मध्यान्त्र या जेजूनम (jejunum) तथा अन्तिम भाग शेषान्त्र या इलियम (ileum) कहलाता है|पाचन मुख्यत: डयोडिनम में तथा अवशोषण इलियम में होता है।

6. बडी आँत्र (Large intestine) - यह आहारनाल का अन्तिम भाग है। छोटी आँत्र तथा बडी आँत्र के सन्धि स्थल पर एक शेषांत्र – उनंडडकीय कपाट या इलीयोसीक्ल वाल्व (ileocaecal valvea) होता है| बड़ी आंत्र को तीन भागों में बाँटा जा सकता है| पहला भाग उणडुक या सीकम (caecum) होता है, इससे एक अन्धनाल जुडी रहती है जिसे कृमिरूप परिशेशिका अवशेषी अंग के रूप में होती है| दूसरा भाग वृहदात्र या कोलन (colon) होता है| कोलन स्थान – स्थान से फुला रहता हैं, इन फुले हुए भागों को हास्ट्रा (haustra) कहते हैं| बड़ी आंत्र का अन्तिम भाग मलाशय या रेक्टम (rectum) कहलाता है| मलाशय गुदा (anus) द्वारा बाहर खुलता है|

यकृत के कार्यं (functions of Liver) :

यकृत शरीर के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य करता है; यथा-

1. पित्त रस का स्त्रावण - यकृत पित्त रस का स्त्रावण करता है। यह एक क्षारीय द्रव है जिसमें पित्त लवण, काँलेस्टेराँल, लेसिथिन तथा पित्त वर्णक होते है। पित रस -

(i) आमाशय से आए भोजन को क्षारीय बनाता है।

(ii) वसा के इमल्सीकरण में सहायक होता है।

(iii) भोजन को सड़ने से रोकता है।

(iv) हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।

(v) पित्त वर्णक, लवण आदि उत्सर्जी पदार्थों को यकृत से बाहर ले जाने का कार्य करता है।

(vi) आहार नाल में क्रमाकुंचन गति को उद्दीप्त करता है।

2. ग्लाइकोजन के रूप में ग्लूकोस का संचय - संवागिकरण के समय जब रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा अधिक होती है तो यकृत कोशिकाएँ ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदल देती है। इस क्रिया को ग्लाइकोजेनेसिस (glycogenesis) कहते हैं!

3. ग्लुकोजिनोलाइसिस (Glucogenolysis) - इस क्रिया के अन्तर्गत जब रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा कम हो जाती है तो संचित ग्लाइकोजन पुन: ग्लूकोस में बदल जाता है।

4. ग्लाइकोनियोजेनेसिस (Glyconneogenesis) - इस क्रिया के द्वारा यकृत कोशिकाएं आवश्यकता पड़ने पर ऐमीनो अम्लों तथा वसीय अम्लों आदि से भी ग्लूकोस का निर्माण कर लेती हैं।

5. वसा एवं विटामिन्स का संश्लेषण एवं संचय - यकृत कोशिकाएँ ग्लूकोस को वसा में भी बदल सकती हैं। यह वसा, वसीय उत्तकों (adipose tissues) में संग्रह के लिए पहुँचा दी जाती है। इसी प्रकार विटामिन्स का भी संश्लेषण हो जाता है।

6. अकार्बनिक पदार्थों का संचय - यकृत द्वारा अकार्बनिक पदार्थ संचित किए जाते है।

UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : कार्बनिक यौगिक, पार्ट-I

UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : कार्बन की संयोजकता, पार्ट-I

श्वसन (Respiration) :

जीवधारियों को जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा भोज्य पदार्थों के आक्सीकरण से प्राप्त होती है। कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों के जैव - रासायनिक आंक्सीकरण को श्वसन कहते है। श्वसन अंगों की सहायता से जीवधारी वातावरण से आंक्सीजन तथा कार्बन डाइआँक्साइड का आदान प्रदान करता है।

मनुष्य का श्वसन तन्त्र (Respiratory System of Man) :

मनुष्य में प्रमुख श्वसनांग फेफडे (lungs) है तथा इनके सहायक अंग है - नासिका (nose), नासामार्ग (nasal passage), स्वर यन्त्र (larynx) व श्वास नंलिका (trachea) आदि!

1. नासिका एवं नासामार्ग (nose and nasal passage) - चेहरे पर स्थित नासिका (nose), दो बाह्य नासाछिद्रों (nostrils) के द्वारा बाहर खुलती है। नासिका नासागुहा में खुलती है। नासागुहा पीछे एक टेढे - मेढे, घुमावदार मार्ग में खुलती है, जिसे नासामार्ग कहते है। यह रोमल श्लेष्मक कला (mucous membrane) से ढका रहता है। इसकी कोशिकाएँ श्लेष्मक स्त्रावित करती है। नासामार्ग मुखगुहा के पीछे ग्रसनी (pgarynx) में खुलता है।

2. स्वर यन्त्र (Larynx) - ग्रसनी या ग्लाटिस (glottis) द्वारा श्वास नलिका में खुलती है। कण्ठ द्वार (glottis) स्वर यन्त्र के मध्य स्थित छिद्र होता है।

स्वर यन्त्र (Larynx)  एक छोटे-से बॉक्स की तरह होता है। यह अनेक उपास्थियों से बना होता है तथा अन्दर से यह श्लेष्मक झिल्ली से ढका रहता है। इसके अन्दर की गुहा में दो मज़बूत पेशीय स्वार रज्जू होते है, इनमें कम्पन होने से ध्वनि उत्पन्न होती है|

3. श्वास नलिका (trachea or Wind pipe) - यह कण्ठ से फेफडों तक फैली नलिका होती है। यह 10.11 सेमी लम्बी, 1.5 से 2.5 सेमी व्यास की होती है। वक्ष में पहुँचकर यह दो छोटी नलिकाओं में बँट जाती है, जिन्हें श्वसनियाँ या ब्रांकाई (bronchi) कहते हैं। प्रत्येक शाखा अपनी ओर के फेफडे में प्रवेश करती है।

श्वासनाल की दीवार में उपास्थियों के अधूरे छल्ले होते है। इन छल्लों से श्वासनाल पिचकने नही पाती तथा वायु के आने जाने में कोई बाधा नहीं पडती है| ऐसे छल्ले श्वस्नियों में भी होते हैं|

respiratory system of man

4. फेफड़े या फुफ्फुस (lungs) – फेफड़े मुख्य श्वस्नांग हैं| ये वक्षगुहा (thoracic cavity) में हदय के पार्श्व में स्थित अत्यन्त कोमल तथा लचीले अंग होते हैं। प्रत्येक फेफडे के चारों ओर एक गुहा होती है, जो दोहरी झिल्ली से घिरी होती है। इस गुहा को फुफ्फुसावरण (pleure cavity) कहते हैं। इसमें एक लसदार तरल पदार्थ भरा रहता है। झिल्लियों को फुफ्फुसावरण (pleura) कहा जाता है। यह फुफ्फुसावरण (pleura) तथा तरल फेफडों की सुरक्षा करते है।

फेफडों की संरचना (Structure of lungs) :

एक जोडी फेफडे मुख्य श्वसन अंग होते हैं। दायाँ फेफडा। बाएँ फेफडे की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है। यह अधुरा खाँचों के द्वारा तीन पिण्डो में बँटा रहता है। बायाँ फेफडा एक ही अधूरी खाँच द्वारा दो पिण्डों में विभक्त होता है। इन खांचो के अतिरिक्त फेफडों की बाहरी सतह सपाट तथा चिकनी होती है। फेफडे स्पंजी एवं असंख्य वायुकोषों (alveoli) में बँटे होते है।

प्रत्येक वायुकोष का सम्बन्ध एक श्वसनी (bronchus) से होता है। प्रत्येक श्वसनी, जो श्वास नलिका के दो भागों में बँटने से बनती है, फेफड़े के अन्दर प्रवेश कर अनेक शाखा-उपशाखाओं मे बँट जाती है। अत्यन्त महीन उपशाखाएँ जो अन्तिम रूप से बनती है कूपिका' नलिकाएँ (alveoler ducts) कहलाती है। प्रत्येक कूपिका नलिकाएं के सिरे पर अनेक बायुकोष (alveoli) होते हैं।

structure of lungs

प्रत्येक वायुकोष (alveolus) शल्की एपिथीलियम से बना होता है। इसकी बाहरी सतह पर रुधिर कोशिकाओँ (blood capillaries) का जाल फैला रहता है। यह जाल फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है।

रक्त केशिकाओं तथा फेफडों की गुहा से स्थित वायु से (O2 तथा CO2 का आदान - प्रदान विसरण द्वारा होता है|

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