चुनौती ऊंचे ख्वाब देखने की
दुनिया में जीने के कई तरीके होते हैं एक दूसरों की शर्तो पर जीते रहो, उनके इशारों को अपने सिर का ताज बनाते चलो या फिर खुद को इस काबिल बनाओ कि दूसरे आपकी सुनने को, आपकी मानने को मजबूर हों। भारतीय प्रशासनिक सेवा ऐसा ही मुकाम है, जहां से आप देश की परिर्वनकारी ताकतों में शुमार हो सकते हैं। लेकिन इसकी राह इतनी आसान भी नही हैं। यहां सालों लग जाते हैं ख्वाबों को जमीन पर शक्ल लेने में। हाल ही में आए सिविल सेवा 2012 के नतीजे इसी की बानगी पेश करते हैं।
महिलाओं का फिर डंका
महिलाओं ने लगातार तीसरी बार सिविल सेवा परीक्षा में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। जहां शीर्ष स्थानों पर महिलाओं की तूती बोली है तो टॉप 25 स्थानों में 12 में महिलाओं ने जगह बनाई है। बात की जाए ओवरऑल मेरिट की तो इसमे चयनित 998 लोगों में 245 महिलाएं शामिल हैं।
कडी रही प्रतिस्पर्धा
सिविल सेवा परीक्षा युवाओं के लिए बडा आकर्षण है। इसकी झलक इस परीक्षा में भी देख सकते हैं। सिविल सेवा 2012 में आवेदन करने वाले उम्मीदवारों की संख्या 5,36,506 थी तो प्रारंभिक परीक्षा देने वाले उम्मीदवार 2,71,422 थे। प्रारंभिक परीक्षा से मुख्य परीक्षा में जगह बनाने वाले छात्रों की संख्या महज 13,092 थी। इनमें से 2,674 छात्रों को पीटी/इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। अंतिम रूप से 998 लोग चयनित हुए।
केरल ने दिखाया दम
सिविल सेवा परीक्षा में दक्षिण भारतीय छात्र बेहतर करते आए हैं। इन नतीजों में उनका प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा। इस वर्ष केरल के उम्मीदवारों ने 12 सालों बाद शीर्ष पर जगह बनाई है। केरल विवि से बीटेक (आईटी) व वर्तमान में शुल्क उत्पाद और नारकोटिक्स एकेडमी में प्रशिक्षणरत केरल की हरीथा वी.कुमार ने परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल किया। हरीथा का यह चौथा प्रयास था। वहीं, दूसरे व चौथे स्थान पर काबिज वी. श्रीराम और एल वे जॉन वर्गीस भी केरल के ही हैं। अन्य राज्यों की बात करें तो शीर्ष 25 उम्मीदवार देश के राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, चंडीगढ दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान के निवासी हैं।
पृष्ठभूमि अलग, मकसद एक
देश की विविधता को देखते हुए सिविल सेवा परीक्षा में चुने जाने वाले उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि में भी अंतर दिखता है। नतीजों में शीर्ष 25 उम्मीदवारों की पारिवारिक पृष्ठभूमि अलग -अलग है। इनमें से किसी के माता-पिता किसान हैं तो कई सफल अभ्यर्थी शिक्षक, वकील, प्रोफेसर, व्यापारी, सिविल सेवकों की संतानें हैं।
सीसैट नहीं हैं परेशानी
सिविल सेवा परीक्षा के पटर्न में समय-समय पर बदलाव आते रहते हैं। हाल फिलहाल इनमें सबसे बडा परिवर्तन सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (2011) के जरिए देखने को मिला। पहले पहल तो इसक ो लेकर कैंडीडेट्स में खासी संशय की स्थिति थी लेकिन दो बार की परीक्षाओं से इसका हौव्वा खत्म हो रहा है। सिविल सेवा 2012 में 12वां स्थान लाने वाले राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि सी-सैट के जरिए उम्मीदवारों पर कम से कम प्रारंभिक परीक्षा का तो बोझ कम हुआ ही है। अब बेसिक मैथ्स, रीजनिंग में साइंस ग्रुप के छात्रों के लिए राह आसान हुई है। ऐसी ही कुछ राय 10 वां स्थान पाने वाले दिल्ली के आशीष गुप्ता भी रखते हैं। उनके मुताबिक सीसैट के अध्ययन में यदि आप चुनिंदा विषयवस्तु का इस्तेमाल करते हुए बेसिक्स पर भी ध्यान देते हैं तो इस पेपर में बेहतर प्रदर्शन के मौके बढ जाएंगे। इस बारे में दृष्टि आईएएस दिल्ली, के निदेशक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति कहते हैं कि एप्टीट्यूड टेस्ट प्रशासनिक सेवाओं के आज के दौर में कैंडीडेट्स की क्षमताओं को आंकने का तरीका है। इसमें वे छात्र ज्यादा सफल हैं, जिनमें अभिरुचि संबंधी मौलिक प्रतिभा है।
सभी के लिए अवसर
इस परीक्षा में सफल स्टूडेंट्स का मानना है कि सिविल सेवा बेशक एक चुनौतीपूर्ण मंच है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यहां कामयाबी खास इंटेलेक्चुअल क्लास को ही मिलती हो। इसमें सफलता के लिए वे वैकल्पिक सबजेक्ट निर्धारण के साथ स्तरीय अध्ययन, धर्य, बेहतरीन नोट्स पर भरोसा जैसे टिप्स पर सर्वाधिक जोर देते हैं। दरअसल इसमें ज्यादातर चीजें बेसिक मैथ्स, रीजनिंग से जुडी होती हैं, जहां आप अपनी पुरानी कक्षाओं के बेसिक्स पर ध्यान देकर पकड बना सक ते हैं। अपने स्टडी पैटर्न?के बारे में राघवेंद्र सिंह बताते हैं कि चूंकि मैं एक बार सेलेक्ट हो चुका था, ऐसे में परीक्षा के बारे में मेरा आत्मविश्वास काफी ऊपर था। मुझे इस बार बहुत ज्यादा अध्ययन की आवश्यकता नहीं पडी। हां, मेन्स के पूर्व आखिर एक माह में ही ज्यादा पढाई की। इस दौरान मुझे कोचिंग संस्थान के वरिष्ठ सर का बहुत सहयोग मिला, जिन्होंने एक अध्यापक नहीं बल्कि बडे भाई के रूप में मुझे मार्गदर्शन दिया।
आईएएस परीक्षा परिणाम 2012
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