सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी 2019 को एक मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि न्यायिक अधिकारी पद के लिए सुनाई और देखने में अयोग्यता की वैध सीमा 50 प्रतिशत है. हाल ही में न्यायिक अधिकारी पद के लिए विकलांगता संबंधित एक याचिका दायर की गई थी जिसके तहत यह फैसला सुनाया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस के.एम. जोसेफ की पीठ ने वकील वी सुरेंद्र मोहन की याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने 70 प्रतिशत की अयोग्यता के साथ आंशिक रूप से दृष्टिबाधित वर्ग में सिविल जज (जूनियर डिविजन) के लिए आवेदन किया था.
संवैधानिक पीठ का फैसला |
पीठ ने कहा कि न्यायिक अधिकारी के पास मामलों को सुनने और फैसला लिखने के लिए सुनने, देखने और बोलने की क्षमता की उचित सीमा होनी चाहिए. लिहाजा सुनने और देखने में अक्षमता की 50 फीसदी सीमा उचित और तार्किक है. पीठ ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज करने में कोई त्रुटि नहीं की है. |
संविधान में विकलांगता से तात्पर्य
निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 की धारा 2(न), (जिसे पीडब्ल्यूडी अधिनियम, 1995 के रूप में भी जाना जाता है) ''विकलांग व्यक्ति कोष ऐसे व्यक्ति को'' रूप में परिभाषित करता है जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा यथा प्रमाणित किसी विकलांगता से न्यूनतम 40 प्रतिशत पीड़ित है.
यह विकलांगता (क) दृष्टिबाधिता (ख) कम दृष्टि (ग) कुष्ठ रोग उपचारित (घ) श्रवण बाधिता (ङ) चलन विकलांगता (च) मानसिक रोग (छ) मानसिक मंदता (ज) स्वलीनता (ऑटिज्म) (झ) प्रमस्तिष्क अंगघात अथवा (ञ) छ),(ज) और (झ) में से दो या अधिक का संयोजन, हो सकता है. 'धारा 2(झ), विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995, सह पठित ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क अंगघात, मानसिक मंदता और बहु-विकलांगताग्रस्त व्यक्तियों के कल्याणार्थ राष्ट्रीय न्याय अधिनियम, 1999 की धारा इसे परिभाषित करती है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation