केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 01 अगस्त 2018 को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में संशोधन को मंजूरी प्रदान की. इसके बाद केंद्र सरकार संशोधित बिल को मौजूदा संसद सत्र में ही पेश कर सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 की शुरुआत में एससी-एसटी एक्ट के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों के दुरुपयोग का हवाला देते हुए उन्हें निरस्त कर दिया था. इस फैसले के बाद इसके विरोध में देश भर में दलित संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया था, जिसके बाद इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी की ओर से भी जल्द से जल्द अध्यादेश लाने की मांग की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और विवाद |
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. इससे पूर्व आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करेगा, यदि आरोप सही पाए जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई होगी. देशभर में ऐसे कई मामले देखे गये हैं जिनमें इस अधिनियम के दुरूपयोग हुआ है. नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में जातिसूचक गाली-गलौच के 11,060 मामलों की शिकायतें सामने आई थी. इनमें से दर्ज हुईं शिकायतों में से 935 झूठी पाई गईं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार यदि आरोपी सरकारी कर्मचारी है तो उसकी तुरंत गिरफ़्तारी नहीं होगी, इसके लिए सक्षम अथॉरिटी की इजाजत अनिवार्य होगी. यदि वह आम नागरिक है तो उनकी गिरफ़्तारी एसएसपी द्वारा मंजूरी से होगी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन आरंभ हो गये. दलित नेताओं द्वारा भारत बंद का आह्वान भी किया गया तथा आगजनी की घटनाएं भी सामने आईं. |
दलित संगठनों की मांग
दलित संगठनों का कहना है कि इससे 1989 का अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम प्रासंगिक नहीं रह जायेगा. इस एक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है. ऐसे में छूट दिए जाने पर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा. इसके अलावा सरकारी अफसरों के खिलाफ केस में सक्षम अथॉरिटी भी भेद-भाव कर सकती है.
मामले की पृष्ठभूमि
महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति ने सरकारी अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ जातिसूचक टिप्पणी की शिकायत दर्ज कराई थी. पीड़ित व्यक्ति द्वारा इस मामले में दो अन्य कर्मचारियों द्वारा कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाने का भी आरोप लगाया गया. गैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके खिलाफ टिप्पणी की थी.
पुलिस अधिकारी ने दोनों कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत मांगी तो इजाजत नहीं दी गई. इस पर उनके खिलाफ भी पुलिस में एफआईआर दर्ज की गई. काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इससे इनकार कर दिया. इसके बाद काशीनाथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जहां एफआईआर हटाने का आदेश दिया गया एवं अनुसूचित जाति/जनजाति एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दिया गया था.
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