केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) ने ककून की उत्पादकता बढ़ाने और रेशम उत्पादन में लगे किसानों की आय बढ़ाने के लिए हाल ही में विकसित शहतूत और वन्या रेशम के रेशम कीटों के अंडों की प्रजातियों को अधिसूचित किया है. ककून की उत्पादकता में वृद्धि करने के उद्देश्य से विशिष्ट कृषि-जलवायु स्थिति के लिए रेशम कीट की नस्लें अत्यंत आवश्यक हैं.
नवीन रेशम कीट के लाभ
- केंद्रीय रेशम बोर्ड (सीएसबी) द्वारा विकसित उष्णकटिबंधीय तसर रेशमकीट (बीडीआर-10) प्रजाति में पारंपरिक डाबा नस्ल की तुलना में 21 प्रतिशत अधिक उत्पादकता है.
- किसान प्रति 100 रोग मुक्त अंडा धारण प्रक्रियाओं (डीएफएल) से 52 किलोग्राम तक ककून प्राप्त कर सकते हैं.
- इस रेशम कीट नस्ल से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के आदिवासी किसान लाभान्वित होंगे.
रेशम कीट की विशेषताएं
- रेशम कीट की मल्टीवोल्टिन x बाइवोल्टिन शहतूत संकर (पीएम x एफसी 2) प्रजाति प्रति 100 डीएफएल 60 किलो का उत्पादन कर सकती है और यह प्रजाति असल में पूर्व प्रजाति पीएम x सीएसआर से बेहतर है.
- उच्च गुणवत्ता वाले रेशम और बड़ी संख्या में अंडे मिलने की बदौलत यह प्रजाति कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और महाराष्ट्र के किसानों के लिए उपयुक्त है.
टिप्पणी
हाल ही में अधिसूचित रेशम कीट की प्रजातियां अपनी बेहतर उत्पादकता और गुणवत्ता के बल पर किसानों की आय बढ़ा देंगी. वस्त्र मंत्रालय के अधीनस्थ केंद्रीय रेशम बोर्ड प्रायोगिक अनुसंधान में जुटा हुआ है और इसके जरिए वह रेशम कीट के अंडों की प्रजातियों की नई नस्लों का विकास कर रहा है. केंद्रीय रेशम बोर्ड इनका वाणिज्यिक उपयोग शुरू किए जाने से पहले व्यापक क्षेत्र परीक्षण करता है.
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