केंद्र सरकार ने 01 जून 2018 कावेरी जल बंटवारे विवाद के समाधान के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुरूप कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण गठित किया है.
यह प्राधिकरण तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी के बीच नदी जल के बंटवारे पर विवाद का समाधान करेगा.
उच्चतम न्यायालय ने 16 फरवरी 2018 को केंद्र सरकार को आदेश के छह सप्ताह के भीतर प्राधिकरण गठित करने का निर्देश दिया था. इस आदेश में कावेरी के जल में कर्नाटक के हिस्से में मामूली वृद्धि की गई थी, जबकि तमिलनाडु के लिए आवंटन कम कर दिया गया था. इसके साथ ही दक्षिण के दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारा विवाद का समाधान करने की मांग की गई थी.
कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण का संरचना और शक्तियां:
प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, आठ सदस्य और एक सचिव होंगे. इनमें दो-दो पूर्णकालिक और अंशकालिक सदस्य होंगे. बाकी चार अंशकालिक सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि होंगे.
यह प्राधिकरण और इसके तहत बनाई गई कावेरी जल नियामक समिति (सीडब्ल्यूआरसी) ही नदी के पानी के बंटवारे के मसले पर विवाद का निपटारा करेगी. साथ ही इस बाबत उच्चतम न्यायालय और कावेरी जल विवाद प्राधिकरण के आदेश लागू करेगी.
कावेरी जल विवाद:
कावेरी नदी के पानी के बंटवारे का मसला तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुड्डुचेरी के बीच लंबे समय से उलझा हुआ है. कावेरी एक अंतरराज्यीय नदी है. कर्नाटक और तमिलनाडु इस कावेरी घाटी में पड़ने वाले प्रमुख राज्य हैं. इस घाटी का एक हिस्सा केरल में भी पड़ता है और समुद्र में मिलने से पहले ये नदी कराइकाल से होकर गुजरती है, जो पुडुचेरी का हिस्सा है. इसलिए इस नदी के जल के बंटवारे को लेकर इन चारों राज्यों में विवाद चल रहा है.
कावेरी नदी के बँटवारे को लेकर चल रहा विवाद 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ. उस वक्त ब्रिटिश राज के तहत ये विवाद मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच था. वर्ष 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ. लेकिन बाद में इस विवाद में केरल और पुड्डुचेरी भी शामिल हो गया और यह विवाद और जटिल हो गया.
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