केंद्र सरकार ने निर्यात हेतु व्यापार बुनियादी ढांचा योजना (टीआईईएस) का शुभारंभ किया. जिसमें केंद्र के साथ राज्यों की भी भागीदारी होगी. वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के अनुसार व्यापार बुनियादी ढांचा योजना (टीआईईएस) का उद्देश्य निर्यातकों की आवश्यकताओं को पूरा करना है.
टीआईईएस योजना के तहत बॉर्डर हाट्स, भूमि सीमा शुल्क स्टेशनों, गुणवत्ता परीक्षण और प्रमाणन प्रयोगशालाओं, कोल्ड चेन, व्यापार प्रोत्साहन केंद्रों, ड्राय पोर्टों, निर्यात भंडारगृहों, पैकेजिंग, विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) और बंदरगाहों / हवाई अड्डों पर कार्गो टर्मिनस जैसी अधिक निर्यात से जुड़ी अवसंरचना परियोजनाओं की स्थापना और उन्नयन के लिए सहायता प्रदान की जाएगी.
योजना में ध्यान केवल बुनियादी ढांचा तैयार करने पर ही नहीं केंद्रित किया जाएगा, अपितु निर्धारित किया जाएगा कि इसे व्यवसायिक तरीके से स्थायी रूप से चलाया जाए.
योजना के अंतर्गत मंजूर की गई परियोजनाओं की प्रगति की समय-समय पर समीक्षा करने हेतु एक अधिकार प्राप्त समिति होगी और वह योजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु आवश्यक कदम भी उठाएगी. केन्द्रीय वाणिज्य सचिव इस समिति के अध्यक्ष होंगे.
योजना हेतु विशेष रूप से गठित अंतर-मंत्रालयीय अधिकारिता समिति कार्यान्वयन एजेंसियों के प्रस्तावों पर कोष प्रदान करने के बारे में विचार विमर्श करेगी.
परियोजना के आकलन हेतु विशिष्ट निर्यात बाधाओं को दूर करने की शर्तों में अपेक्षित लाभ सहित इसके औचित्य का मूल्यांकन किया जाएगा.
मुख्य तथ्य-
- टीआईईएस योजना राज्यों को दिए गए कोषों से बुनियादी ढांचा तैयार की दिशा में हस्तांतरण बढ़ाने को प्रोत्साहित करने हेतु महत्वपूर्ण है.
- प्रस्तावित योजना का उद्देश्य निर्यात बुनियादी ढांचे की खामियों को समाप्त कर निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना, निर्यात संवर्द्धन परियोजनाओं के लिए पहले और आखिरी स्तर के बीच संपर्क स्थापित करना और गुणवत्ता तथा प्रमाणीकरण सुविधा प्रदान करना है.
- योजना के अंतर्गत निर्यात संवर्द्धन परिषदों, कमोडिटीज बोर्डों, एसईजेड प्राधिकारियों और भारत सरकार की एक्जिम नीति के अंतर्गत मान्यता प्राप्त शीर्ष व्यापार निकायों सहित केंद्रीय और राज्य एजेंसियां वित्तीय समर्थन पाने हेतु पात्र होंगी.
- योजना वर्तमान वित्त वर्ष 2017-18 से (अप्रैल से शुरू) अगले वित्त वर्ष 2019-20 तक संचालित की जाएगी.
- योजना हेतु कुल 600 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन किया गया है और इसके लिए सालाना 200 करोड़ रुपये खर्च किया जाएगा.
- इस योजना के तहत केंद्र और राज्य की आधी-आधी भागीदारी होगी और केंद्र प्रत्येक परियोजना को अधिकतम 20 करोड़ रुपये देगा.
- योजना के अंतर्गत किसी परियोजना की अधिकतम राशि 40 करोड़ रुपये तक होनी चाहिए.
- केवल पहाड़ी राज्यों और पूर्वोत्तर राज्यों को ही केंद्र सरकार परियोजना की 80 फीसदी तक सहायता देगी.
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